ऑल इंडिया आशा एसोसियशन का केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को ज्ञापन
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की ‘रीढ़’ आशा की सेवा का नियमितिकरण करने, सरकारी कर्मचारी घोषित करने एवं नियमन के पूर्व सभी आशा कर्मियों को राष्ट्रीय स्तर पर एक समान कम-से-कम 18000रू. न्यूनतम मासिक मानदेय की व्यवस्था करने के संबंध में.
पिछले साल 18 फरवरी को ऑल इंडिया आशा एसोसियशन के एक शिष्टमंडल ने स्वास्थ्य सचिव से मिलकर ज्ञापन सौंपा था. उन्होंने आशाओं से संबंधित मांगों को जायज बताया था और अपेक्षित कदम उठाने का आश्वासन दिया था.
लेकिन काफी समय गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. आशा के श्रम और दक्षता का दोहन हो रहा है जो कि भारत के स्थापित श्रम कानूनों तथा 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों का उल्लंघन है. जन स्वास्थ्य सेवा और अभियानों को सुदूर गांवों तक पहुंचाने वाली मुख्य कड़ी आशा के मौलिक सवालों को अभी तक हल नहीं किया जाना समझ से परे है. जबकि भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में जो भी प्रगति दर्ज हुयी है उसका श्रेय तमाम अधिकारियों ने आशा तंत्र को दिया है. इस परिस्थिति में देशभर में आशाओं का आंदोलन उभरा है और तमाम स्तरों पर उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है और मांगों को रखा है. पूरे देश की स्कीम वर्करों के संसद के समक्ष 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आयोजित 11 नवंबर के धरने में पूरे देश की आशा प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में शिरकत की है. इस आंदोलन के माध्यम से एक बार फिर भारत सरकार से हम निम्नलिखित मांगें करते हैंः
पिछले साल 18 फरवरी को ऑल इंडिया आशा एसोसियशन के एक शिष्टमंडल ने स्वास्थ्य सचिव से मिलकर ज्ञापन सौंपा था. उन्होंने आशाओं से संबंधित मांगों को जायज बताया था और अपेक्षित कदम उठाने का आश्वासन दिया था.
लेकिन काफी समय गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. आशा के श्रम और दक्षता का दोहन हो रहा है जो कि भारत के स्थापित श्रम कानूनों तथा 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों का उल्लंघन है. जन स्वास्थ्य सेवा और अभियानों को सुदूर गांवों तक पहुंचाने वाली मुख्य कड़ी आशा के मौलिक सवालों को अभी तक हल नहीं किया जाना समझ से परे है. जबकि भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में जो भी प्रगति दर्ज हुयी है उसका श्रेय तमाम अधिकारियों ने आशा तंत्र को दिया है. इस परिस्थिति में देशभर में आशाओं का आंदोलन उभरा है और तमाम स्तरों पर उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है और मांगों को रखा है. पूरे देश की स्कीम वर्करों के संसद के समक्ष 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आयोजित 11 नवंबर के धरने में पूरे देश की आशा प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में शिरकत की है. इस आंदोलन के माध्यम से एक बार फिर भारत सरकार से हम निम्नलिखित मांगें करते हैंः
- आशा कर्मियों को सरकारी कर्मचारियों का दर्जा दो. जब तक ऐसा नहीं किया जाता, न्यूनतम वेतन रू.18000/- प्रति माह डीए सहित भुगतान किया जाए. साथ ही रू.3000/- प्रतिमाह पेंशन डीए सहित दी जाए. आशा कर्मियों को मानदेय भी नहीं मिलता, उन्हें केवल प्रोत्साहन राशि मिलती है, अतः पूरे देश में आशा कर्मियों के लिए एक समान मानदेय लागू किया जाए.
- समुचित बजट प्रावधान कर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को मजबूत किया जाए.
- 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की आशा कर्मियों के लिये की गयी सिफारिशों को, श्रमिक का दर्जा प्रदान करने समेत, लागू किया जाए.
- ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कार्यरत आशा कर्मियों केा समान राशि का भुगतान और एक समान अन्य सुविधाएं दी जाएं. इन्हें सामाजिक सुरक्षा जैसे पीएफ, इएसआई, जनश्री बीमा योजना और बीपीएल सूची में शामिल किया जाए. कार्य के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
- आशा/एनआरएचएम को स्थायी/संस्थागत किया जाए.
- हर पीएचसी/सिविल व जिला अस्पताल में आशा भवन का निर्माण किया जाए जिसमें प्रसव, एम्बुलेंस एवं दवाइयों की पूरी व्यवस्था हो.
- आशा कर्मियों को स्कूटी/साईकिल, मोबाइल फोन उपलब्ध कराया जाए. साथ ही दो सेट यूनिफॉर्म, कोट सहित, साल मे दो बार; किट बैग, छाता, चप्पल/जूता एवं टार्च लाईट आदि उपलब्ध कराये जाएं.
- आशा कर्मियों को महीने के अंदर सभी देय राशि का भुगतान सुनिश्चित किया जाए. सभी किस्म की प्रोत्साहन रािश का भुगतान अलग-अलग किया जाए. बार-बार नियुक्ति के क्षेत्र मे ही रहने का आवासीय प्रमाण पत्र लेने की पद्वति बंद की जाए
- आशा कर्मियों की स्थिति परिभाषित की जाए कि वे किसके प्रति जवाबदेह होंगी और उनसे कार्य लेने एवं वेतन देने के लिये कौन जवाबदेह होगा.