Trilokinath Temple In Lahaul Spiti Himachal Pradesh HP
||Trilokinath Temple In Lahaul Spiti In English ||Trilokinath Temple In Lahaul Spiti In Hindi||
In Hindi
कैलाश मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ के रूप में माना जाता है। मंदिर की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि यह पूरी दुनिया में एकमात्र मंदिर है जहां दोनों हिन्दू और बौद्ध मतावलम्बी एक ही देवता को बराबर सम्मान देते हैं। यह मंदिर चंद्र-भागा घाटी में पश्चिमी हिमालय में स्थित है। यह अत्यधिक आध्यात्मिक स्थान माना जाता है, जहां व्यक्ति को तीन लोकों के स्वामी का आशीर्वाद मिलता है, अर्थात् श्री त्रिलोकनाथ जी के दर्शन की यात्रा करते हुए हिन्दूओं के शैव, लाहौल के बौद्ध स्वरूप एवं तिब्बती बौद्ध मत का प्रभाव एक साथ देखने को मिलता है। रोहतांग टनल के खुल जाने से इस मन्दिर तक पहुंचना काफी आसान हो गया है।
जिला मुख्यालय केलांग से लगभग 45 किलोमीटर और मनाली से लगभग 110 किलोमीटर दूर है। मंदिर का ऐतिहासिक महत्व के बारे में निश्चित तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु ऐसा मत है कि यह मंदिर 10 वीं सदी में बनाया गया था। यह बात एक शिलालेख पर लिखे गए सन्देश द्वारा साबित हुई है जो 2002 में मंदिर परिसर में पाया गया था। इस शिलालेख में वर्णन किया गया है कि यह मंदिर ‘दीवानजरा राणा’ द्वारा बनाया गया था, जो वर्तमान में ‘त्रिलोकनाथ गांव के राणा ठाकुर शासकों के पूर्वज माने जाते हैं। उनका मत है कि चंबा के राजा शैल वर्मन ने ‘शिखर शैली’ में इस मंदिर का निर्माण करने में सहायता की थी, क्योंकि वहां शिखर शैली का ‘लक्ष्मी नारायण’ मन्दिर चंबा में भी स्थित है। राजा शैल वर्मन चंबा शहर के संस्थापक थे। यह मंदिर सम्भवतः 9वीं शताब्दी के अंत में और लगभग 10 वीं शताब्दी के प्रारंभ में बनाया गया था। चम्बा के महायोगी सिद्ध चरपती दार (चरपथ नाथ) के राजवंश ने भी इसके निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी बोधिसत्व आर्य अवलोकीतेश्वर में अनन्त आस्था एवं भक्ति थी और उन्होंने आर्य अवलोकितेश्वर की स्तुति में 25 श्लोकों की रचना की थी जिसे कि ‘अवलोकीतेश्वर स्त्रोतन छेदम’ के नाम से जाना जाता है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि यह ‘शिखर-शैली’ में लाहौल घाटी का एकमात्र मंदिर है। त्रिलोकनाथ जी की मूर्ति में ललितासन भगवान बुद्ध त्रिलोकनाथ के सिर पर बैठे हैं। यह मूर्ति संगमरमर से बनी है। इस मूर्ति से संबंधित भी कई स्थानीय किंवदंतियां प्रचलित हैं। यह कहा गया था कि वर्तमान में ‘हिंसा नाल्ला’ पर एक दूधिया रंग की झील थी, सात लोग इस झील से बाहर आकर पास चरने वाली गायों का दूध पी लेते थे। एक दिन टुंडू नामक चरवाहे ने उनमें से एक आदमी को पकड़ लिया और पीठ पर उसे अपने गांव में ले गया। वह पकडा हुआ व्यक्ति एक संगमरमर की देव मूर्ति में बदल गया। इस देवमूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया। तिब्बती कहानियों में इस झील को ‘ओ मे-छो’ अर्थात ‘दूधिया महासागर’ कहा जाता है। अन्य स्थानीय किंवदंती के अनुसार मंदिर का निर्माण एक ही रात में एक ‘महादानव’ के द्वारा पूरा किया गया था। वर्तमान में भी हिंसा नाला’ अपने आप में अद्वितीय है क्योंकि इसका पानी अभी भी दूधिया सफेद है और भारी बारिश में भी इसका रंग नहीं बदलता है। आज भी बौद्ध परंपराओं के अनुसार ही इस मंदिर में पूजा की जाती है। यह प्राचीन समय से परम्परा चली आ रही है। हिंदू धर्म के लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा करवाया गया था। वहीं बौद्धों के विश्वास के अनुसार पद्मसंभव 8 वीं शताब्दी में यहां पर आए थे और उन्होंने इसी जगह पर पूजा की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर से जुड़े कई रहस्य जुड़े हुए हैं। जिनके बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया। इसी से जुड़ा एक किस्सा कुल्लू के राजा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि वह भगवान की इस मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे।
मंदिर को कैलाश और मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। लाहौल के लिए वर्ष 2015 महत्त्वपूर्ण था क्योंकि त्रिलोकनाथ मंदिर में ‘महाकुंभ’ का जश्न मनाया गया जो की हर 12 वर्षों के अंतराल के बाद आता है। इससे पहले महाकुंभ उत्सव वर्ष 2003 में मनाया गया था। अगला महाकुम्भ देखने का सौभाग्य हमें वर्ष 2027 में मिलेगा। यह महाकुंभ ज्यादातर बौद्ध लोगों द्वारा मनाया जाता है और बहुत से भक्त इसमें स्पीति घाटी, ऊपरी किन्नौर, जंस्कर और लद्दाख से आकर यहां दर्शनों के लिए यात्रा करते हैं। भक्त अपनी अगाध श्रद्धा एवं आस्था प्रकट करने के लिए इस मन्दिर में पहुंचते हैं। मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में होती है। परम पावन दलाई लामा ने भी बहुत खुशी से जुलाई के महीने में यहां पवित्र यात्रा कर इस मन्दिर में पधारे थे। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की विशाल संख्या के कारण मंदिर के अधिकारियों द्वारा पर्यटक तंबूओं में रहने का प्रबन्ध किया किया गया था। इस महाकुम्भ का भक्तों को इंतजार रहता है।