Folk Dances of Himachal Pradesh In English

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Educational Psychology In Hindi For HPTET

 Educational Psychology In Hindi For HPTET 

||Educational Psychology In Hindi For HPTET ||Educational Psychology In Hindi For HPTGT||

 

Educational Psychology In Hindi For HPTET

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)

शिक्षा एक ऐसा पद है जिसका उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। प्राचीन काल में गुरु एवं शिष्य या दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि ज्ञानी एवं अज्ञानी के बीच ज्ञान के लेन-देन की सुव्यवस्थित प्रक्रिया को शिक्षा कहा जाता था। इस काल में गुरु को अपने शिष्यों । कुछ आवश्यक तथ्यों को कंठस्थ कराना पड़ता था और यही उनकी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाता था। इस तरह की शिक्षा देने में शिष्य की आयु, रुचि एवं योग्यता आदि पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता था। शिक्षक का कर्तव्य शिष्य को मात्र सूचना दे देना होता था। स्पष्टतः इस तरह की शिक्षा बाल-केन्द्रित न होकर ज्ञान केन्द्रित थी। शिष्य चाहे बालक हो या वयस्क उसे एक ही तरह की शिक्षा दी जाती थी। इसका परिणाम यह होता था कि बालक या शिष्य का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता था।

                                                                                                          परन्तु, आधुनिक काल में शिक्षा का यह अर्थ पूर्णतः समाप्त हो गया है। आधुनिक काल में शिक्षा का अर्थ किसी तरह का उपदेश या सूचना देना नहीं होता है, बल्कि यह व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिए एक निरन्तर चलने वाली ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में निहित क्षमताओं का सही-सही उपयोग विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि आजकल शिक्षा से तात्पर्य व्यक्ति में निहित क्षमताओं का विकास से होता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति समाजोपयोगी बनता है। इस अर्थ में क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) ने शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है, “शिक्षा व्यक्तिकरण एवं समाजीकरण की वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति की व्यक्तिगत उन्नति तथा समाजोपयोगिता को बढ़ावा देती है।” (“‘Education is an individualizing and socializing process that furthers personal advancement as well as social living.”) इसी तरह के विचार अन्य विशेषज्ञों; जैसे—स्किनर (Skinner), रिली तथा लेविस (Reilly & Lewis) द्वारा भी अपनी परिभाषाओं में व्यक्त किया गया है।

                                                                                                  स्पष्ट है कि इन वैज्ञानिकों ने शिक्षा को एक सामाजिक प्रक्रिया माना, जिसके द्वारा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। सर्वांगीण विकास से तात्पर्य व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक या नैतिक विकास से है। शिक्षा व्यक्ति के लिए एक ऐसा अनुकूल वातावरण तैयार कर देती है जहाँ व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक क्षमताओं का निरन्तर विकास बिना किसी तरह की रुकावट के होते रहता है। शिक्षा व्यक्ति में शारीरिक विकास कर उसे शारीरिक रूप से इस लायक बना देती है कि वह अपने वातावरण के साथ समुचित समायोजन कर सके। उसी तरह से शिक्षा व्यक्ति में मानसिक विकास करके मानसिक रूप से स्वस्थ तथा नैतिक विकास करके नैतिक रूप से स्वस्थ बनाकर उसमें समाजीकरण की प्रक्रिया को शीर्ष पर पहुँचाती है। 

स्पष्ट हुआ कि आधुनिक शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य प्राचीन काल के शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य से सर्वथा भिन्न है। आधुनिक समय में शिक्षा शान की लेन-देन की प्रक्रिया नहीं बल्कि बालकों या वयस्कों के चहुंमुखी विकास या सर्वांगीण विकास करने की तथा उनमें निहित विभिन्न क्षमताओं को जगाने की एक प्रक्रिया है।

 मनोविज्ञान का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Nature of Psychology)

सरल शब्दों में, मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दोनों प्रकार के व्यवहारों का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन है। ‘मनोविज्ञान’ शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘साइके’ तथा ‘लॉगस’ से हुई है। ग्रीक भाषा में ‘साइके’ शब्द का अर्थ है ‘आत्मा’ तथा ‘लॉगस’ का अर्थ है ‘शास्त्र’ या ‘अध्ययन’। इस प्रकार पहले समय में मनोविज्ञान को ‘आत्मा के अध्ययन’ से सम्बद्ध विषय माना जाता था। भारत में वैदिक तथा उपनिषद्काल का प्रमुख उद्देश्य चेतना का अध्ययन’ था। मानसिक प्रक्रियाओं के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण किया गया। इसके उपरान्त योग, सांख्य, वेदान्त, न्याय, बौद्ध तथा जैन दृष्टिकोणों ने मन, मानसिक प्रक्रियाओं तथा मन के नियन्त्रण पर विस्तृत जानकारी दी। आधुनिक काल में कलकत्ता विश्वविद्यालय में 1916 में मनोविज्ञान विभाग की स्थापना की गयी थी।

        1879 में जब विलियम वुण्ट ने लिपजिग विश्वविद्यालय, जर्मनी में प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की, तब पश्चिम में मनोविज्ञान का एक आत्मनिर्भर क्षेत्र के रूप में औपचारिक आरम्भ हुआ। तब से लेकर अब तक मनोविज्ञान के विकास ने एक लम्बी यात्रा तय की है। सामाजिक विज्ञान में आज यह एक बहुत ही लोकप्रिय विषय माना जाता है। इसमें सभी प्रकार के अनुभवों, मानसिक प्रक्रियाओं तथा व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। इन सभी पक्षों का व्यापक विश्लेषण हमें मानव प्रकृति की एक वैज्ञानिक समझ प्रदान करता है।

                                                                 आगे आने वाले अध्यायों में हम उन सभी घटकों को समझने का प्रयास करेंगे जो एक साथ मिल कर मनोविज्ञान की एक व्यापक परिभाषा प्रदान करते हैं।

1. अनुभवों का अध्ययन-मनोवैज्ञानिक कई प्रकार के मानव अनुभवों और भावनाओं का अध्ययन करते हैं, जिनकी प्रकृति मुख्यतः व्यक्तिगत होती है। ये अनुभव विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं; जैसे–स्वप्न, जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में चेतन अनुभव, और वे अनुभव जब चेतन अवस्था के स्वरूप को ‘ध्यान’ या चेतना प्रसारी औषधियों के प्रयोग द्वारा परिवर्तित कर दिया गया हो। इस प्रकार के अनुभवों के अध्ययनों के द्वारा मनोवैज्ञानिकों को व्यक्तियों के व्यक्तिगत स्वरूप को समझने में सहायता मिलती है।

2. मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन:- मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के रूप में मनोविज्ञान मस्तिष्क में हो रही उन क्रियाओं का पता लगाने का प्रयास करता है जिनका स्वरूप वस्तुतः दैहिक न हो। इन मानसिक प्रक्रियाओं में प्रत्यक्षीकरण, सीखना, याद करना तथा चिन्तन आदि सम्मिलित हैं। ये वे आन्तरिक मानसिक क्रियाएँ हैं, जिनका प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण नहीं किया जा सकता किन्तु व्यक्ति के व्यवहार से इनका अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरणतः यदि कोई व्यक्ति दी गई गणित सम्बन्धी समस्या का समाधान ढूँदने के लिये कुछ निश्चित क्रियाकलाप करता है तब हम कह सकते हैं कि वह चिंतन कर रहा है।

3. व्यवहार का अध्ययन–मनोविज्ञान के अन्तर्गत व्यवहारों के अध्ययन का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के व्यवहार; जैसे, साधारण प्रतिवर्त क्रियाएँ (उदाहरण के लिये, आँख झपकना), सामान्य प्रतिक्रिया संरूप, जैसे-मित्रों से बातचीत, भावनाओं व आन्तरिक स्थिति का शाब्दिक वर्णन और जटिल व्यवहार, जैसे-कम्प्यूटर पर कार्य करना, पियानो बजाना और भीड़ को सम्बोधित करना आदि, सम्मिलित हैं। ये व्यवहार या तो प्रत्यक्ष रूप से देखे जा सकते हैं या परीक्षणों द्वारा इनका मापन किया जा सकता है। जब एक व्यक्ति दी गई स्थिति में एक उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया करता है, तब इस प्रकार के व्यवहार सामान्यतः शाब्दिक या अशाब्दिक (उदाहरणतः चेहरे के हाव-भाव) रूप से व्यक्त किये जाते हैं। 

इस प्रकार मनोविज्ञान में अध्ययन की प्रमुख इकाई व्यक्ति स्वयं तथा उसके अनुभव, मानसिक प्रक्रियाएँ एवं व्यवहार हैं।

Meaning and Nature of Psychology

                                           

मनोविज्ञान का विकास (Development of Psychology)

आधुनिक विद्याशाखा के रूप में मनोविज्ञान, जो पाश्चात्य विकास सेएक बड़ी सीमा तक प्रभावित है, का इतिहास बहुत छोटा है। इसका उद्भव मनोवैज्ञानिक सार्थकता के प्रश्नों से सम्बद्ध प्राचीन दर्शनशास्त्र से हुआ है। हमने उल्लेख किया है कि आधुनिक मनोविज्ञान का औपचारिक प्रारम्भ 1879 में हुआ जब विलहम वुण्ट (Wilhelm Wundy ने लिपजिग, जर्मनी में मनोविज्ञान की प्रथम प्रायोगिक प्रयोगशाला को स्थापित किया । वुण्ट सचेतन अनुभव अध्ययन में रुचि ले रहे थे और मन के अवयवों अथवा निर्माण की इकाइयों का विश्लेषण करना चाहते थे। युण्ट के समय में मनोवैज्ञानिक अंतर्निरीक्षण (Introspection) द्वारा मन की संरचना का विश्लेषण कर रहे थे इसलिए उन्हें संरचनावादी कहा गया । अंतर्निरीक्षण एक प्रक्रिया थी जिसमें प्रयोज्यों से मनोवैज्ञानिक प्रयोग में कहा गया था कि वे अपनी मानसिक प्रक्रियाओं अथवा अनुभवों का विस्तार से वर्णन करें। यद्यपि, अंतर्निरीक्षण एक विधि के रूप में अनेक मनोवैज्ञानिकों को संतुष्ट नहीं कर सका । इसे कम वैज्ञानिक माना गया क्योंकि अंतर्निरीक्षणीय विवरणों का सत्यापन बाझा प्रेक्षकों द्वारा सम्भव नहीं हो सका था। इसके कारण मनोविज्ञान में एक नया परिदृश्य उभर कर आया। 

         एक अमरीकी मनोवैज्ञानिक, विलियम जेम्स (William James) जिन्होंने कैम्ब्रिज, मसाधुसेट्स में एक प्रयोगशाला की स्थापना लिपजिग की प्रयोगशाला के कुछ ही समय बाद की थी, ने मानव मन के अध्ययन के लिए प्रकार्यवादी (Functionalist) उपागम का विकास किया। विलियम जेम्स का विश्वास था कि मानस की संरचना पर ध्यान देने के बजाय मनोविज्ञान को इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि मन क्या करता है तथा व्यवहार लोगों को अपने वातावरण से निपटने के लिए किस प्रकार कार्य करता है। उदाहरण के लिए, प्रकार्यवादियों ने इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया कि व्यवहार लोगों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने योग्य कैसे बनाता है। विलियम जेम्स के अनुसार वातावरण से अंत क्रिया करने वाली मानसिक प्रक्रियाओं की एक  सतत्  के रूप में चेतना ही मनोविज्ञान का मूल स्वरूप रूपायित करती है। उस समय के एक प्रसिद्ध शैक्षिक विचारक जॉन डीवी (John Dewey) ने प्रकार्यवाद का उपयोग यह तर्क करने के लिए किया कि मानव किस प्रकार वातावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करते हुए प्रभावोत्पादक ढंग से कार्य करता है।

                                                            बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में, एक नयी धारा जर्मनी में गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology) के रूप में वुण्ड के संरचनावाद (Stneturalism) के विरुद्ध आई। इसने प्रात्यक्षिक अनुभवों के संगठन को महत्वपूर्ण माना । मन के अवययों पर ध्यान न देकर गेस्टाल्टवादियों ने तर्क किया कि जब हम दुनिया को देखते हैं तो हमारा प्रात्यक्षिक अनुभव प्रत्यक्षण के अवयवों के समस्त योग से अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, हम जो अनुभव करते हैं वह वातावरण से प्राप्त आगों से अधिक होता है। उदाहरण के लिए, जब अनेक चमकते बल्यों से प्रकाश हमारे दृष्टिपटल पर पड़ता है तो हम प्रकाश की गति का अनुभव करते हैं। जब हम कोई चलचित्र देखते हैं तो हम स्थिर चित्रों की तेज गति से चलती को अपने दृष्टिपटल पर देखते हैं। इसलिए, हमारा प्रात्यक्षिक अनुभव अपने अवयवों से अधिक होता है। अनुभव समग्रतावादी होता है यह एक गेस्टाल्ट होता है।

                                                           संरचनावाद की प्रतिक्रिया स्वरूप एक और धारा व्यवहारवाद (Behaaviourism) के रूप में आई। सन् 1910 के आसपास जॉन वाटसन (John Watsan) ने मन एवं चेतना के विचार को मनोविज्ञान के केन्द्रीय विषय के रूप में अस्वीकार कर दिया। दैहिकशास्त्री इवान पायलय (Ivan Pavlov) के प्राचीन अनुबंधन याले कार्य से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए मन प्रेक्षणीय नहीं है और अंतर्निरीक्षण व्यक्तिपरक है क्योंकि उसका सत्यापन एक अन्य प्रेक्षक द्वारा नहीं किया जा सकता है। उनके अनुसार एक विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान क्या प्रेक्षणीय तथा सत्यापन करने योग्य है. इसी पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्होंने मनोविज्ञान को व्यवहार के अध्ययन अथवा अनुक्रियाओं (उद्दीपकों की) जिनका मापन किया जा सकता है तथा वस्तुपरक ढंग से अध्ययन किया जा सकता है, के रूप में परिभाषित किया। वाटसन के व्यवहारवाद का विकास अनेक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों द्वारा आगे बढ़ाया गया जिन्हें हम व्यवहारवादी कहते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध स्किनर (SkinneT) थे जिन्होंने व्यवहारवाद का अनुप्रयोग विविध प्रकार की परिस्थितियों में किया तथा इस उपागम को प्रसिद्धि दिलाई। वाटसन के बाद यद्यपि व्यवहारवाद मनोविज्ञान में कई दशकों तक छाया रहा परन्तु उसी समय मनोविज्ञान के विषय में एवं उसकी विषयवस्तु के विषय में कई अन्य विचार एवं उपागम विकसित हो रहे थे। एक व्यक्ति जिसने मानव स्वभाव के विषय में अपने मौलिक विचार से पूरी दुनिया को झंकृत कर दिया वे सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) थे। फ्रायड ने मानव व्यवहार को अचेतन इच्छाओं एवं द्वन्द्वों का गतिशील प्रदर्शन बताया। मनोवैज्ञानिक विकारों को समझने एवं उन्हें ठीक करने के लिए उन्होंने मनोविश्लेषण (Psycho-analysis) को एक पद्धति के रूप में स्थापित किया।

शिक्षा-मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग है। स्किनर के शब्दों में-“शिक्षा-मनोविज्ञान उन खोजों का शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो कि विशेषतया मानव प्राणियों के अनुभव और व्यवहार से सम्बन्धित है।

शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों के योग से बना है-‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अत: इसका शाब्दिक अर्थ है-शिक्षा सम्बन्धी मनोविज्ञान’।

दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव-व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। अत: हम स्किनर के शब्दों में कह सकते हैं-‘शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार सम्बन्धी विज्ञान है, ग्रहण करता है।

“Educational psychology takes its meaning from education, a social process and from psychology, a behavioural science.” -Skinner

शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ का विश्लेषण करने के लिए स्किनर (Skinner) ने निम्नलिखित तथ्यों की ओर संकेत किया है

1. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र, मानव-व्यवहार है।

2. शिक्षा मनोविज्ञान, खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।

3. शिक्षा मनोविज्ञान में संग्रहीत ज्ञान को सिद्धान्तों का रूप प्रदान किया जा सकता है।

4. शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी स्वयं की पद्धतियों का प्रतिपादन किया है।

5. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त और पद्धतियाँ शैक्षिक सिद्धान्तों और प्रयोगों को आधार प्रदान करते हैं।

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शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएँ (Definitions of Educational Psychology)

शिक्षा-मनोविज्ञान मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का शिक्षा में प्रयोग ही नहीं करता अपितु शिक्षा की समस्याओं को हल करने में योग देता है। इसलिये शिक्षाविदों ने शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन, विश्लेषण, विवेचन तथा समाधान के लिये इसकी परिभाषायें इस प्रकार दी हैं

स्किनर- शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित सम्पूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आ जाता है।

“Educational psychology covers the entire ranges of behaviour and personality as related to education.” “-Skinner

क्रो व क्रो-“शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।

Educational psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth through old age.”-Crow and Crow

नॉल व अन्य-“शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव-व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है

“Educational psychology is concerned primarily with the study of human behaviour as it is changed or directed under the social process of education.” –Noll and Others: Jowwal of Educational Psychology, ,1948

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