Jukaru Utsav-जुकारू उत्सव
||Jukaru Utsav-जुकारू उत्सव||Jukaru Utsav chamba pangi in hindi ||Jukaru Utsav in english||
मेले त्योहार हमारी संस्कृति के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर भी है। जो हमारी परंपरा की पहचान बनाए रखते हैं। हर क्षेत्र के लोग अपने अपने क्षेत्र में आपसी तालमेल भाईचारे से मेलों त्योहारों को मनाते हैं। प्रत्येक धर्म, जाति क्षेत्र के लोग अपने-अपने धर्म क्षेत्र के अनुसार मनाए जाने वाले मेलों और त्योहारों का साल भर बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसी प्रकार जिला चंबा के विकास खण्ड पांगी के लोग की पहचान जुकारु त्योहार है। पंगवाल समुदाय मौनी अमावस्या से जुकारू त्योहार को बड़े हर्षोउल्लास से मनाता है। हालांकि मौनी अमावस्या समस्त देश में मनाई जाती है और जुकारु त्योहार को तो लाहौल स्पीति किन्नौर कुल्लू तिब्बती और नेपाली मूल के लोग भी मनाते हैं। पांगी में सदियों से मनाया जाने वाला जुकारु आपसी भाई चारे का प्रतीक तो हैं ही साथ में पंगवाल सांस्कृतिक विरासत की पहचान की झलक भी संजोए रखता है। जुकारु त्योहार के दिन पंगवाल समुदाय साल भर के द्वेषभाव को भुला कर अपना से बड़ो के घर जाकर उनके पांव छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। एक दूसरे के गले मिलकर सब गिलेशिकवे भूला कर शुशहाल जीवन की शुभकामनाएं देते हैं और तरह-तरह के पकवान भेंट करते हैं। जुकारू का त्योहार मौनी अमावस्या की रात को राक्षसों के राजा बलि की पूजा अर्चना के साथ शुरू किया जाता है।
किंवदंती और लोक आस्था के अनुसार मकरसंक्रांति के उपरांत समस्त देवता के स्वर्ग प्रवास पर चले जाते हैं और भगवान शिव जिसको पांगी में शितबुड़ी/ शितराज के नाम से पूजते हैं एक माह के लिये चंद्रभागा में प्रवेश करते हैं। उसके बाद घाटी में राक्षसों का राज (लोगो की रक्षा करने वाला कोई नहीं होता है) रहता है। उस समय राजा बलि और पितर देवता रक्षा करते हैं। इसलिए लोग मौनी अमावस्या को राजा बलि और पितरों की पूजा करते हैं। इस दिन से आपसी भाईचारे के प्रतीक जुकारु त्योहार को मनाया जाता है जोकि करीब एक माह तक चलता है। कुछ लोगों का यह भी मत है कि पुराने समय में पांगी के लोगों के पास आपसी मेल-जोल का कोई दूसरा साधन न होने के कारण मौनी अमावस्या को मनाने के साथ जुकारु त्योहार की शुरआत की गई जोकि अपनो से मिलने का और सर्दियां खत्म होने का जरिया बना। पांगी में सर्दियों में मनाये जाने वाले त्योहार का शुभारंभ मकरसंक्रांति से होता है माघ पूर्णिमा के दिन चजगी/खाहुल, का त्योहार मनाया जाता है यह त्योहार भी पितरों को समर्पित रहता है। दस दिन के बाद समल का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार पिशाचिनियों को शांत करने के लिए मनाया जाता है। त्योहार के दिन राजा बलि की पूजा में जो फूल चढ़ाए जाते हैं उनके लिए माघ पूर्णमासी के दूसरे दिन जौ, गेहूं और एलो दानों को बर्तन में डाल कर फूल तैयार किये जाता हैं, जिनको जेवरा का फूल कहा जाता है। पांगी में माघ मास में तापमान शून्य से नीचे रहता है कड़ाके की ठण्ड में भी अंकुर (कलियां) आते हैं। जिनको जुकारु त्योहार के दिन सब से सिल्ल के दिन राजा वली की पूजा में चढ़ाया जाता है।
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