Kahika Fair-काहिका मेला
||Kahika Fair-काहिका मेला||Kahika Fair-काहिका मेला In Hindi||
काहिका मेला–‘काहिका’ कुल्लू और मंडी में आषाढ़ – श्रावण में देवता के विशेष मेलों का नाम है जिनमें ‘नौड़’ मरता है। नौड़ एक जाति विशेष है जिसे बाहरी सिराज व रामपुर की ओर बेड़ा कहा जाता है । कुल्लू व संलग्न मंडी के इलाकों में नौड़ परिवार बहुत कम हैं। काहिका का नामकरण क्यों हुआ, इस शब्द का अर्थ या व्युत्पत्ति क्या है यह अभी अज्ञात है। यह धार्मिक उत्सव या तो मन्दिर के नवनिर्माण, किसी मूर्ति – मोहरे के निर्माण के समय होता है या देवता की इच्छा से । कुछ परम्परागत काहिके भी हैं जो प्रत्येक वर्ष, तीसरे, पांचवें, सातवें या बारहवें वर्ष होते हैं । विभिन्न क्षेत्रों के काहिके में नौड़ को मारने की प्रक्रिया भी थोड़ी बहुत भिन्न है। बिजली महादेव, नरोगी, नरां, दरार, शिरढ़, टिहरी, छमाहण आदि गांवों में प्राय: ये उत्सव होते रहते हैं । । काहिका प्रायश्चित का यज्ञ भी माना जाता है । इलाके भर में किसी व्यक्ति द्वारा हुए किसी भी प्रकार के पाप का प्रायश्चित इस यज्ञ में किया जाता है । इसे छिद्रा कहा जाता है । शिरढ़ में मनाया जाने वाला काहिका प्रायश्चित के लिए ही आयोजित होता है । काहिके में आरम्भ में ‘गूर खेल’ एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है जिसमें देवता के सजे हुए रथ के सामने कटार, संगल और देवता के साजोसामान सहित देवता गूर नृत्य करते हैं ।
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