lahaul spiti ka haridwar-chandrabhaga sangam

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 lahaul spiti ka haridwar-chandrabhaga sangam

||lahaul spiti ka haridwar-chandrabhaga sangam In Hindi||lahaul spiti ka haridwar-chandrabhaga sangam||

  • पश्चिमी हिमालय का हरिद्वार लाहुल-स्पीति का चंद्रभागा संगम है। 
  • युगों-युगों से चंद्रभागा संगम जहां इतिहास का साक्षी रहा है, वहीं, पश्चिमी हिमालय के लोग इस संगम को हरिद्वार के समान ही पवित्र मानते हैं। 
  • कबायली जिला सहित लेह-लद्दाख व चीन अधिकृत तिब्बत के लोगों के लिए यह स्थल हरिद्वार से कम नहीं है। 
  • आज भी लोग इसी संगम स्थल पर अपने पूर्वजों की अस्थियां बहाकर पुण्य कमाते हैं।
  •  सर्दियों में कबायली लोग छः माह तक बर्फ के कारावास में कैद हो जाते थे और इसी स्थल में अस्थियां प्रवाहित करते रहे हैं। 
  • हालांकि अब अटल सुरंग रोहतांग के खुल जाने से कबायली क्षेत्र के लोगों का आवागमन आसान हो गया है लेकिन अब यह स्थल धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में उभर कर सामने आ गया है। 
  • हालांकि यहां का धार्मिक महत्त्व पहले से ही हैं लेकिन रोहतांग दर्रा के बंद होने और अति दुर्गम होने के कारण इस स्थल के दर्शन सीमित लोग ही कर पाते थे।
  • अब अटल सुरंग के खुल जाने से देशदुनिया के लोगों के लिए यह सुंदर स्थल आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
  •  अब इस पवित्र स्थल के संरक्षण की भी भी तैयारियां होने लगी है। लाहुल-स्पीति के इस संगम स्थल के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो भागाचंद्रा ने कई युग देखे हैं।
  •  बौद्ध मान्यता के अनुसाद नदी का नाम तंगती पड़ा यानी कि स्वर्ग का पानी। 
  • बौद्ध धर्म के लोग इस पानी को स्वर्ग से आया हुआ पानी मानते हैं। 
  • बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ विमान बत्थू में इस नदी को तंगती कहा गया है। 
  • अरबी और फारसी में मुगलों ने इस नदी का नाम ‘चिनाब’ दिया जिसका अर्थ था ‘आव ए-चीन’ यानी कि चीन से आने वाला पानी। 
  • वहीं, युनानी ग्रंथों में नदी का नाम हाईपसिस पड़ा।
  •  युनानियों ने इस नदी को अपशगुनी नदी माना, क्योंकि सिकंदर की छाती में आखिरी तीर इसी नदी के तट पर लगा था। माना जाता है कि सिकंदर को यहीं आकर शिकस्त मिली थी। 
  • वहीं, वैदिक काल में चंद्रभागा नदी का नाम ‘अस्किनी’ पड़ा। ऋग्वेद के नदी सोख्त अध्याय में नदी को अस्किनी नाम से पुकारा गया है। 
  • पौराणिक काल में शिव पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत में इस नदी को चंद्रभागा का नाम दिया है। 
  • वहीं, बौद्ध सिद्ध घंटापा ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है कि इसी संगम पर द्रोपदी का अंतिम संस्कार हुआ था। 
  • यही नहीं इस ग्रंथ में यह भी दर्शाया गया है कि यह स्थल लोमश ऋषि की तपोस्थली है।
  •  वर्तमान में इस नदी को लाहुल-स्पीति में चंद्रभागा व वहां से आगे चिनाब के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि यह नदी पश्चिमी हिमालय के कई देशों को सींचती है जिसमें तिब्बत, भारत व पाकिस्तान भी शामिल है।
  •  गौर रहे कि वर्तमान में लाहुल-स्पीति का भागा-चंद्रा संगम स्थल बेहद सुंदर व धार्मिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। 
  • लाहुल-स्पीति के पर्यटन में भी यही संगम स्थल चार चांद लगाता है। संगम स्थल को विकसित करने के लिए लाहुल-स्पीति की जनता एकजुट हो चुकी है और यही कारण है कि कुछ वर्ष पहले यहां पर संगम पर्व भी मनाया गया। 
  • भविष्य में यहां पर हरिद्वार की तर्ज पर घाट बनाने की भी योजना है। 
  • लाहुल-स्पीति के लोगों का कहना है कि वे भौगोलिक तौर पर अति दुर्गम क्षेत्र में रहते हैं जो छः माह तक बर्फ के कारावास में परिवर्तित हो जाता है। 
  • उसी स्थिति को नजर में रखते हुए इस क्षेत्र के लोग सदियों से इसी संगम स्थल पर अस्थियां विसर्जित करते आए हैं। 
  • इसलिए उनके लिए यह स्थल पवित्र तीर्थ हरिद्वार से कम नहीं है और इस स्थल का वर्तमान में  विकास होना आवश्यक है जिससे यहां की धार्मिक आस्था व नदी के इतिहास का संवर्धन किया जा सके। 
  • यह स्थल लाहुल-स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग से ठीक सात किलोमीटर पहले देश के सबसे ऊंचे दिल्ली-लेह मार्ग पर पड़ता है। 
  • यहां पर चंद्रा व भागा नदी का संगम होता है और यहां से आगे यह नदी चिनाब बन जाती है और दूसरी तरफ पाकिस्तान में जाकर गिरती है। चंद्रा नदी स्पीति घाटी की तरफ से आती है और भागा- चंद्रा दोनों नदियों का उद्गम स्थल बारालाचा दर्रा है जबकि भागा नदी लाहुल घाटी से आती है। 
  • खास बात यह है कि बारालाचा दर्रा के एक तरफ से चंद्रा नदी निकलती है जबकि दूसरे छर से भागा निकलती है। चन्द्रा नदी स्पीति घाटी को सिंचित करती है और भागा लाहुल घाटी को। वर्तमान में भागा चन्द्रा संगम जाने का रास्ता बिलकुल सुगम है। 
  • यदि आप हवाई मार्ग द्वारा कुल्लू-मनाली स्थित भुंतर एयरपोर्ट में उतरते हो तो भुंतर से कुल्लू 10 किलोमीटर का सफर है।
  •  यहां से 45 किलोमीटर आगे मनाली पड़ता है जो विश्व भर में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध हैं। मनाली के बाद सोलंग नाला होते हुए अटल टनल तक का रास्ता प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और इस पर कई रोमांचकारी स्थल हैं। 
  • मनाली से अटल टनल के 28.5 किलोमीटर के सफर में कई सुंदर नजारे यहां के आकर्षण को और अधिक बढ़ा देते हैं। 
  • इसके बाद आधुनिक सविधा से लेस 9 किलोमीटर की अटल टनल रोहतांग टनल में आरामदायक सफर किया जा सकता है। दूसरी तरफ निकलने पर शीत मरुस्थल की सुंदर वादियों के दर्शन हो जाते हैं। टनल के पार कुछ ही दूरी में लाहुल का पहला गांव सिस्सू नजर आएगा और यहां घेपन ऋषि का प्राचीन मंदिर है। 
  • घेपन ऋषि के दर्शन के बाद सीधे उसी मार्ग दिल्ली-लेह मार्ग पर आगे बढ़ते गोंदला गांव व और अन्य छोटे गांव आते हैं और गोंदला से आगे तांदी पड़ता है। 
  • अटल रोहतांग टनल से तांदी तक का यह सफर 36.8 किलोमीटर का है और बस यहीं पर भागा-चंद्रा नदी का संगम स्थल है। जहां आप लोगों को इस पवित्र स्थल के दर्शन हो जाएंगे। इस संगम से जिला मुख्यालय केलांग की दूरी 9.5 किलोमीटर है। सर्दियों में चंद्रभागा नदी पूरी तरह से बर्फ में जम जाती है और कई बार तो संगम का पानी इतना ठोस हो जाता है कि स्थानीय लोग इस पर आइसकेटिंग तक कर डालते हैं। 
  • उस समय यह स्वर्गिक अनुभूति करवाता है। गर्मियों में स्थल के चारों तरफ सुंदर हरियाली रहती है।
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