National Movement in Himachal Pradesh (1848-1948)

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National Movement in Himachal Pradesh (1848-1948)

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(1) 1857 ई. के विद्रोह के समय महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश अधिकारी.

  •  शिमला के डिप्टी कमिश्नर- लॉर्ड विलियम हे
  • हिन्दुस्तान-तिब्बत रोड के सुपरिंटेंडेंट- कैप्टन डेविड ब्रिग्ज
  • ब्रिटिश सेना के कमाण्डर-इन-चीफ- जनरल जॉर्ज एनसन
  • क्वार्टर मास्टर जनरल- कर्नल ए. बेकर
  • कसौली के सहायक कमिश्नर- पी. मैक्सवैल
  • पंजाब के चीफ कमिश्नर- जॉन लॉरेंस ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट
  • जनरल एनसन की मृत्यु के बाद नया कमाण्डर-इन-चीफ- सर.एच.बर्नाड
  • ट्रांस सतलुट स्टेट के कमिश्नर- एडवर्ड जॉन लेक
  • सुपरिंटेंडेंट शिमला हिल स्टेटस- मेजर जी.सी. बानर्स
  • धर्मशाला पुलिस कमाण्डर- कैप्टन बंग हसबैण्ड
  • डिप्टी कमिश्नर काँगडा- रेयनल टेलर
  • सिरमौर बटालियन के ब्रिटिश कमाण्डर- मेजर चार्ल्सरीड
  • पंजाब के ज्युडिशियल कमिश्नर- रॉबर्ट माँटगोमरी

ii) स्थानीय क्रांतिकारी एवं राजा 1857 ई. के विद्रोह के समय-

  •  नसीरी सेना’ (जतोग विद्रोह) के नेता- सूबेदार भीम सिंह
  •  कसौली विद्रोह के नेता- दरोगा बुद्धि सिंह
  • बुशहर के राजा- शमशेर सिंह
  • शिमला (रूपाटू निवासी) गुप्त संगठन के नेता- राम प्रसाद वैरागी
  • . कहलूर के राजा- हीराचंद
  •  सिरमौर के राजा- शमशेर प्रकाश
  • सिरमौर के सहायक प्रशासक- कुंवर सुर्जन सिंह और कुंवर वीर सिंह
  •  सुजानपुर टिहरा में राजा- प्रताप चंद
  • कुल्लू के राजा किशन सिंह के पुत्र- युवराज प्रताप सिंह
  •  चम्वा के राजा- श्री सिंह
  •  चम्बा के वजीर- मियां अतर सिंह
  •  मण्डी के राजा-विजय सेन
  • मण्डी के वजीर- वजीर गोसाऊं

(iii) 1857 ई. से पूर्व की घटना- लाहौर संधि से पहाडी राजाओं का अंग्रेजों से मोह भंग होने लगा, क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें उनकी पुरानी जागीरें नहीं दी। दूसरे ब्रिटिश-सिख युद्ध (1848 ई.) में काँगडा पहाड़ी की रियासतों ने सिखों का अंग्रेजों के विरुद्ध साथ दिया। नूरपुर, काँगडा, जसथाँ और दतारपुर की पहाड़ी रियातों ने अंग्रेजों के खिलाफ 1848 ई. में विद्रोह किया जिसे कमिश्नर लॉरेंस ने दबा दिया। सभी को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा ले जाया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।  हि.प्र. में कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह  की पहली चिंगारी 20 अप्रैल, 1857 ई. में कसौली सैनिक छावनी में भड़की जब अम्बाला राईफल डिपो के 6 देशी सैनिकों ने कसौली में एक पुलिस चौकी को आग लगा दी।

iv) 1857 ई. की क्रांति के कारणजनसाधारण में असंतोष– अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जनसाधारण के धार्मिक जीवन और सामाजिक रीतिरिवाजों में अनावश्यक हस्तक्षेप और पक्षपातपूर्ण नीतियों से लोगों में रोष फैल गया था।

  •  पहाड़ी राजाओं में असंतोष– शिमला पहाड़ी रियासतों में अनावश्यक हस्तक्षेप तथा काँगड़ा की पहाड़ी रियासतों के अनेक राजवंशों की समाप्ति से पहाड़ी राजाओं में असंतोष था।
  • देशी सैनिकों से पक्षपातपूर्ण व्यवहार- कोई भी भारतीय सैनिक स्टॉफ अफसर नहीं बन सकता था। सरकार सैनिकों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप करती थी। सेना का सबसे बड़ा भारतीय अफसर ब्रिटिश सेना के सबसे छोटे अंग्रेज अफसर के अधीन होता था। उन्हें भारत के बाहर भी लड़ने भेजा जाता था।
  • लार्ड डल्हौजी की लैप्स (व्ययगत) की नीति भी 1857 ई. की क्रांति का कारण भी।
  •  चर्बी वाले कारतूस-नई राइफल जिसे एन्फील्ड राइफ़ल कहते थे उसमें गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग में लाए जाते थे जिसे प्रयोग करने से हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने इंकार कर दिया। यह राइफल 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण थी।

(iv ) शिमला क्षेत्र में 1857 ई. की क्रांति की शुरूआत-11 मई, 1857 ई. को मेरठ, अम्बाला और दिल्ली के विद्रोह और कत्लेआम का समाचार शिमला पहुँचा। ब्रिटिश सेना के कमाण्डर-इन-चीफ जनरल जॉर्ज एनसन ने जतोग, सपाटू, डगशाई और कसौली की सैनिक छावनियों के सैनिक को अम्बाला कूच करने के आदेश दिए और स्वयं भी हड़बड़ाहट में अंबाला की ओर निकल पड़ा। देशी सेना ने उसका आदेश नहीं माना।

  •  शिमला क्षेत्र में आतंक-जनरल निकोलस पैन्नी के निर्देशानुसार 800 यूरोपीय स्त्री, पुरुष और बच्चे पहले चर्च और बाद में शिमला बैंक (ग्रैंड होटल) में एकत्रित हुए। शिमला के डिप्टी कमिश्नर लॉर्ड विलियम हे लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ रहे। यूरोपीय लोगों ने डगशाई सैनिक बैरकों एवं जुन्गा राजमहल में जाकर शरण ली। कुछ अंग्रेज धामी, कोटी, बलसन और बघाट के शासकों की शरण में आ पहुँचे। मेजर जनरल गोवन्ज ने 15 मई, 1857 ई. को परिवार सहित जुन्गा के राजा के पास शरण ली। कर्नल कीथयंग और कर्नल ग्रेटहैड ने भी परिवार सहित क्योंथल के राजा के पास शरण ली।
  • भीम सिंह के नेतृत्व में नसीरी बटालियन द्वारा विद्रोह-जतोग में तैनात “नसीरी बटालियन” (गोरखा रेजिमेंट) ने देशी सेना के सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में जतोग छावनी और खजाने पर कब्जा कर लिया। कसौली का नसीरा टुकड़ा के देशी सैनिकों ने 16 मई, 1857 ई. को विद्रोह कार कसौलीग की ओर बढ़ना शुरू किया। सूबेदार भीम सिंह इस देशी सेना के नेता था सूखदार भीम सिंह के नेतृत्व में कसौली की क्रांतिकारी सेना ने जतोग की ओर बढ़ते हुए मार्ग में हरीपुर नामक स्थान पर जार्ज एनसन के टैंटों में आग लगाकर शस्त्र और सामान लूट लिया। नसीरी सेना के कसौली से जाने के बाद स्थानीय पुलिस गार्ड ने क्रांति की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके नेता छावनी थाने के दरोगा बुद्धि सिंह बने। उसके नेतृत्व में क्रांतिकारिणे ने कसौली खजाने पर कब्जा किया और अंग्रेजों से लड़ने के लिए जतोग की ओर बढ़े। अंग्रेजों ने कुछ को पकड़ लिया, कुछ मुठभेड़ में मारे गए, बुद्धि सिंह ने स्वयं को गोली मार ली। 18 मई, 1857 ई. को कैप्टन मोफट’, डगशाई से कैप्टन ब्रुक और सपाटू से कर्नल कांगरीब अपने-अपने सैनिक दस्तों के साथ कसौली की सुरक्षा को पहुँच गए। 24 मई, 1857 ई. को जतोग की क्रांतिकारी नसीरी सेना ने सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में बैठक का आयोजन कर कैप्टन डेविड ब्रिग्ज (हिन्दुस्तान तिब्बत सड़क के सुपरिटेन्डेन्ट) और डिप्टी कमिश्नर विलियम हे के प्रस्ताव पर विचार किया। दिल्ली, मेरठ और आम्बाला के क्रांतिकारियों से सहयोग न मिलने के कारण जतोग  की नसोरी सेना ने विद्रोह स्थगित करने निर्णय लिया।
  •  रामप्रसाद वैरागी –शिमला में गुप्त संगठन अंग्रेजों के विरुद्ध कार्य कर रहा था जिसके नेता थे राम प्रसाद बैरागी। अम्बाला के कमिश्नर जी.सी.बार्नरने इस संगठन के कुछ पत्र 12 जून, 1857 ई. को पकड़े जो रामप्रसाद बटालियन के सूबेदार को सहारनपुर तथा महाराजा पटियाला के वकील को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए भेजे थे। रामप्रसाद बैरागी को गिरफ्तार कर अंबाला जेल ले जाया गया और वहाँ उसे फाँसी दे दी।
  • बुशहर रियासत का रूख-बुशहर रियासत ने 1857 ई. के विद्रोह के समय अंग्रेजों का साथ नहीं दिया। बुशहर के राजा शमशेर सिंह ने अंग्रेजों को 15,000 रुपये वार्षिक नजराना देना बंद कर दिया तथा उन्हें किसी भी प्रकार की आर्थिक एवं सैनिक सहायता प्रदान नहीं की और रियासत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। अंग्रेज अफसरों, कर्मचारियों, पर्यटकों और व्यापारियों के प्रति प्रतिकूल रवैया अपनाया गया। शिमला के डिप्टी कमिश्नर विलियम हे और पहाड़ी रियासतों के पोलीटिकल एजेन्ट बुशहर के राजा विरुद्ध कार्यवाही करना चाहते थे परंतु सेना की कमी और हिन्दुस्तान-तिब्बत सड़क के निर्माण की वजह से राजा के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सके।
  •  पहाड़ी रियासतों का सहयोग-27 मई, 1857 ई. को ब्रिटिश सेनापति जनरल जॉर्ज एनसन का अम्बाला में देहान्त होने के बाद सर एच, बर्नार्ड को नया कमाण्डर-इन-चीफ नियुक्त किया गया। 28 मई, 1857 ई. को जतोग, सपाट, कसौली, डगशाई और कालका के देशी सैनिकों ने विद्रोह त्यागने का निर्णय लिया। 7 जून, 1857 ई. को शिमला म्यूनिसिपल कमेटी के प्रेजीडेन्ट कर्नल सी.डी.ब्लेयर ने पंजाब के चीफ कमिश्नर लॉरेंस को पत्र भेज शिमला की सुरक्षा के लिए कैप्टन ब्रिग्ज को मार्शल-लॉ की शक्ति देने का आग्रह किया। परिणामस्वरूप जॉन लॉरेंस ने विलियम हे को डबल बैरल गन वाले 20 जवान, 50 पुलिस और 100 देशी गार्ड दिए। विलियम हे ने 7 अगस्त, 1857 ई. को कहलूर रियासत के 50 जवान बालूगंज में सिरमौर रियासत के 60 सैनिक कुंवर वीर सिंह के नेतृत्व में बड़ा बाजार में, रियासत क्योथल, धामी, भज्जी और कोटी के 60 सिपाही डिप्टी कमिश्नर के आवास पर नियुक्त किए गए। इसके अलावा 250 जवान बाघल, जुब्बल, कोटी, क्योंथल और धामी शासकों ने आपातकाल के लिए नियुक्त किए।

(vi) सिरमौर रियासत-जनरल जॉर्ज एनसन ने 11 मई, 1857 ई. को सिरमौर रियासत के नाहन में तैनात सिरमौर बटालियन के गोरखा सैनिकों को अम्बाला कूच करने का आदेश दिया जिसे सैनिकों ने पालन करने से मना कर दिया। सिरमौर के राजा शमशेर प्रकाश केवल 11 वर्ष के थे। नाबालिग राजा की सहायता के लिए कुंवर सुर्जन सिंह और वीर सिंह को प्रशासक नियुक्त किया गया जिन्होंने जनसाधारण और सिरमौर बटालियन के असंतोष को शांत कर दिया।

(vii) काँगड़ा क्षेत्र की गतिविधियाँ-14 मई, 1857 ई. को विद्रोह की सूचना काँगड़ा के डिप्टी कमिश्नर मेजर रेयनैल टेलर को धर्मशाला में प्राप्त हुई। काँगड़ा किला मेजर पैटरसन की कमाण्ड में 4-नेटिव इनफैन्ट्री देशी सेना के अधिकार में था। इस रेजीमेंट में विद्रोह के डर से अंग्रेज अफसर किले को वफादार सेना के कब्जे में लाना चाहते थे। काँगड़ा के डिप्टी कमिश्नर मेजर रैयनल टेलर ने पुलिस बटालियन की सुरक्षा में काँगड़ा किले में जाकर शरण ले ली जिससे धर्मशाला में नाजुक स्थिति पैदा हो गई। 23 मई, 1857 ई. से पंजाब के ज्यूडीशियल कमिश्नर, रॉबर्ट माँटगोमरी के आदेशानुसार पूरे काँगड़ा क्षेत्र में साधुओं, फकीरों, भिखारियों और पर्यटकों का आना-जाना बन्द कर दिया गया। डिप्टी कमिश्नर टेलर ने ‘शेरदिल पुलिस बटालियन’ के 100 जवानों को लेकर नूरपुर विद्रोह को दबाने के लिए कूच किया. परंतु उनके पहुंचने से पहले ही 4 नेटिव इनफैन्ट्री के स्थानीय कमाण्डर मेजर बिल्की ने देशी सैनिकों को हथियार छोड़ने के लिए सहमत करवा लिया। इस प्रकार अंग्रेजों ने नूरपुर और काँगड़ा के किलों को पूर्ण रूप से अपने अधिकार में ले लिया। सुजानपुर टीहरा का कटोच राजा प्रताप चंद भी गुप्त रूप से अपने किले में क्रांति की तैयारी कर रहा था जिसमें उसकी मदद टीहरा का क्रांतिकारी थानेदार कर रहा था।

(viii) कुल्लू क्षेत्र में बगावत- कुल्लू क्षेत्र में जनक्रांति की योजना का नेतृत्व स्थानीय युवराज प्रताप सिंह (कुल्लू के राजा किशन सिंह के पुत्र) ने किया।वह 1846 ई. में सिक्ख-अंग्रेजों के बीच मुदकी-अलिवाल युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए घायल होकर सिराज पहुँचा और कुछ समय बाद स्वस्थ हो गया। अंग्रेज उसे मरा समझते थे। उसने 16 मई, 1857 ई. में सारे सिराज क्षेत्र में आजादी की भावना जागृत की जिसमें उसका मुख्य सलाहकार व सहयोगी उनका साला मियाँ वीर सिंह (बैजनाथ, काँगड़ा का निवासी) था। प्रताप सिंह और उसके साथी वीर सिंह को गिरफ्तार कर धर्मशाला में 3 अगस्त, 1857 ई. को फाँसी दे दी गई।

(ix )चम्बा रियासत-चम्बा के नागरिकों ने 1857 ई. के विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया। चम्बा के राजा श्री सिंह ब्रिटिश सरकार के वफादार बने रहे। ब्रिटिश राजनीतिक एजेन्ट और पंजाब के चीफ कमिश्नर, जॉन लॉरेंस के आदेश पर 16 मई, 1857 ई. से रियासत के सभी मुख्य मार्गों पर पुलिस गार्ड का पहरा लगा दिया गया। जालंधर में 36-नेटिव इन्फैन्ट्री और 61-नेटिव इन्फैन्ट्री के विद्रोह से डलहौजी में बसे अंग्रेज भयभीत हो गए। कुछ महिलाओं और बच्चों ने चम्बा के राजा के पास शरण ली। डलहौजी की सुरक्षा के लिए मियां अतर सिंह के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी भेजी गई।

(x ) मण्डी रियासत-1857 ई. के विद्रोह के समय मण्डी रियासत के राजा विजय सेन केवल दस वर्ष के थे। अंग्रेजों ने बजीर गोसाऊं को मण्डी स्टेट का वजीर व प्रशासक बनाया। अंग्रेजों के वफादार वजीर गोसांऊ ने विद्रोह को भड़कने से पहले ही दबा दिया। उसने अंग्रेज अफसरों की माँग पर 125 बंदूकधारी जवान ऊना-होशियारपुर विद्रोह को दबाने के लिए भेजे। 28 मई, 1857 ई. को 60 पैदल सैनिक ट्रांस-सतलुज स्टेट्स के कमिश्नर एडवर्ड जॉन लेक के आदेश पर नालागढ़ की सुरक्षा के लिए प्रदान किए। वजीर गोसाऊ ने 50 जवान जालन्धर के विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार को प्रदान किए। युद्ध आर्थिक सहायता के रूप में मण्डी रियासत ने 125,000 रुपये ब्रिटिशर सरकार को भेंट किए। वजीर गोसाऊं ने स्वयं 15000 रुपये अपने व्यक्तिगत खाते से प्रदान किए।

(xi  ) हिमाचल में विद्रोह का अंत-14 अगस्त, 1857 ई. तक शिमला, काँगड़ा, कुल्लू, नालागढ़ और अन्य पहाड़ी रियासतों में क्रांति के शोले धीमे पड़ चुके थे। इस क्रांति में 50 हिमाचली क्रांतिकारियों को फाँसी, 500 को जेलों में बंद तथा 30 को देश निकाला दिया गया था तथा उनकी सम्पत्तियाँ जन्त कर ली गई।

(xii ) 1857 के बाद हि.प्र. में संवैधानिक एवं प्रशासनिक विकास-1857 ई. को क्रांति के बाद हिमाचल एवं समस्त भारत में भारत सरकार अधिनियम, 1858′ लागू किया गया। | नवम्बर, 1858 को महारानी विक्टोरिया घोषणा पत्र की घोषणा लार्ड कैनिंग ने इलाहाबाद में की। शिमला में भी इसका प्रकाशन हुआ तथा शहर के मुख्य स्थानों पर इसे चिपकाया गया।

1858 के अधिनियम के अनुसार हिमाचल की प्रशासनिक व्यवस्था (Administrative system in Himachal accordingto 1858 Act)-भारत सरकार अधिनियम, 1858 के अन्तर्गत् तत्कालीन हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश सरकार का और सुदृढ़ नियन्त्रण स्थापित हो गया और उन्होंने निम्नलिखित ढंग से वहाँ प्रशासनिक व्यवस्था लागू की. 

  • उस समय हिमाचल में दो प्रकार का शासन प्रबन्ध प्रचलित था। पंजाब हिल स्टेट्स में नूरपुर, काँगड़ा, जसंवा, गुलेर, सिव्या, दातारपुर, कोटला, कुल्लू,भंगाहल, लाहौल और स्पीति की रियासतें अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खो चुकी थीं। अंग्रेजों ने इन रियासतों को जीत कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था। इन सभी रियासतों के क्षेत्र को संगठित करके एक प्रशासनिक ईकाई के रूप में जिला काँगड़ा’ बना दिया गया। इसका प्रशासन डिप्टी कमिश्नर काँगड़ा के नियंत्रण में था।
  • इसके अतिरिक्त शिमला हिल स्टेट्स में जतोग, स्पाट, कसौली, डगशाई, कोटखाई, भरौली, सनावर एवं शिमला शहर के अलग-अलग क्षेत्रों को मिलाकर ‘जिला शिमला’ बना दिया गया था, जो डिप्टी कमिश्नर शिमला के नियंत्रण में था। उपरोक्त जिला काँगड़ा जिला शिमला और चम्बा रियासत का डलहौजी एवं बकलोह छावनी क्षेत्र अंग्रेजों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में थे।
  • .देशी शासकों के अधीन लघु राज्यों में शिमला हिल स्टेट्स और सतलुज के आर-पार की रियासतें आती थीं। शिमला हिल स्टेट्स में बुशैहर, क्योथल, जुब्बल, कुमारसैन, कुनिहार, बाघल, बघाट, बलसन, शांगरी, कुठाड़, बेजा, भज्जी, दारकोटी, धामी, मांगल, महलोग, थरोच, नालागढ़, खनेटी, देलठ, ठियोग, बूंड, मधान, रतेश और रावी रियासतें आती थीं और इनमें देशी शासकों का प्रशासन था। छोटी ठकुराइयों में करांगला, खनेटी, भरौली, देलठ और शांगरी आदि बुशैहर रियासत के अधीन थीं। इस प्रकार रावी, ढाडी और सारी पर जुब्बल के शासक का आधिपत्य था। ठियोग, बूंड, मधान, रतेश और कोटी के शासक क्योंथल राज्य के अधीन थे।
  • इन ठकुराइयों का अपना-अलग और स्वतन्त्र अस्तित्व कभी नहीं रहा था। ये ठकुराइयां प्राय: बड़े राज्यों, जैसे बुशहर, सिरमौर, नालागढ़, क्योंथल, बिलासपुर और जुब्बल के प्रशासकों के प्रभुत्व में थी। यद्यपि इन रियासतों ने अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया परंतु ये अपने आन्तरिक शासन में स्वायत्त थी। ब्रिटिश सरकार ने इनके नियन्त्रण के लिए सुपरिटेंडेंट और कमिश्नर, शिमला हिल स्टेट्स को नियुक्त किया।
  • सतलुज पार की कुछ रियासतों में मण्डी, सुकेत, बिलासपुर, चम्बा और कुटलैहड़ में भी देशी राजाओं का शासन था। अंग्रेजों के प्रभुत्व में इनके नियन्त्रण के लिए ‘सुपरिटेंडेंट सिस-सतलुज स्टेट्स’ की नियुक्ति की गई थी। इन सभी रियासतों पर पंजाब सरकार द्वारा नियुक्त ब्रिटिश अधिकारियों का नियन्त्रण रहता था। इस विभाग के अधिकारी; जैसे-पॉलीटिकल रेजिडेंट्स, एजेन्ट्स और सुपरिटेंडेंट रियासतों के प्रशासन का निरीक्षण रखते थे।ये सभी अधिकारी वायसराय के प्रति उत्तरदायी थे।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1858 के अन्तर्गत् हिमाचल की सभी रियासतों के शासकों को अपने राज्यों के आन्तरिक शासन प्रबन्ध में स्वायत्तता प्रदान की गई।

xiii )  1857 ई. के विद्रोह के दौरान सहयोग करने वाले राजाओं को सम्मान-वुशहर के राजा शमशेर सिंह के विद्रोह को नजर अंदाज करने के अलावा जसवाँ के विद्रोही राजा, रणसिंह को अल्मोड़ा जेल से मुक्त कर जसा में जागीर प्रदान की गड़ा दत्तारपुर के राजा जगत सिंह के पुत्र देवी सिंह को अल्मोड़ा जेल से रिहा किया गया। नूरपुर के राजा वीर सिंह की वार्षिक पेंशन दुगनी कर दी गई। बाघल के राणा कृष्ण सिंह को ‘राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा उसके भाई जय सिंह को ‘खिल्लत’ प्रदान की गई। क्योंथल के राणा संसारसेन को “राजा” को उपाधि से सम्मानित किया गया और ‘खिल्लत’ प्रदान की गई। धामी के राणा गोवर्धन सिंह का आधा नजराना माफ कर दिया गया। मण्डी, सिरमौर, कहलूर, जुब्बल और चम्बा के शासकों को भी सम्मान प्रदान किया गया।

xiv ) दिल्ली दरबार-1877 ई. में लार्ड लिट्न के कार्यकाल में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। इसमें चम्बा के राजा श्याम सिंह, मण्डी के अवसर पर दिल्ली में दरबार लगाया गया। इस दरबार में सिरमौर के राजा अमर प्रकाश, बिलासपुरा राजा अमर चंद, क्योंथल के राजा विजाई सेन, सुकेत के राजा भीमसेन, चम्बा के राजा भूरी सिंह, बघाट के राजा दीप सिंह और जुब्बल के राजा भगत चंद ने भाग लिया। 

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