Search
Close this search box.

Praja Mandal Movements

Facebook
WhatsApp
Telegram

National Movement with special reference to Praja Mandal Movements in Himachal Pradesh (1848-1948)

||Praja Mandal Movements||Praja Mandal Movements in hindi||

(i) आल इण्डिया स्टेट पीपल कांफ्रेंस-19वीं शताब्दी के अंत में तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में पहाड़ी रियासतों के लोगों में बड़ी तेजी से जागृति आई। वहाँ भी उत्तरदायी सरकार स्थापित करने के लिए आंदोलन आरम्भ होने लगे। कांग्रेस ने भी इस बात को समझा कि वह रियासती प्रजा को मार्ग दिखाए। साथ ही कांग्रेस को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करनी थी। इसमें देशी रियासतें भी शामिल थीं। ये रियासतें भारत के ही टुकड़े थे, जिन्हें भारत से पृथक् नहीं रखा जा सकता था। 17 दिसम्बर, 1927 में बम्बई में आल इण्डिया स्टेटस पीपुल कांफ्रेंस” (अखिल भारतीय रियासती प्रजा परिषद्) का गठन किया गया। इसका प्रथम अधिवेशन भी सन् 1927 ई. में हुआ।

लुधियाना कांफ्रेंस-15-16 फरवरी, 1939 को लुधियाना में “आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल कांफ्रेंस” का सम्मेलन जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ। पं. नेहरू ने रियासतों में प्रजा मण्डल की स्थापना पर जोर दिया। उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि छोटी रियासतें मिलकर संगठन बनायें ताकि संगठन शक्तिशाली बने। लुधियाना में इस अधिवेशन में शिमला की पहाड़ी रियासतों से पं. पद्मदेव, भागमल सौहटा थे। मण्डी से स्वामी पूर्णानन्द सिरमौर से ठाकुर हितेन्द्र सिंह, बिलासपुर से सदाराम चन्दल, चम्बा में विद्या सागर, विद्याधर, गुलाम रसूल और पृथ्वी सिंह ने भाग लिया। इसके पश्चात् इन पहाड़ी रियासतों में तेजी से प्रजा मण्डल बनने लगे।

(ii) सिरमौर में प्रजा मण्डल का गठन-अखिल भारतीय रिसायती प्रजा परिषद् के प्रस्तावों से प्रभावित हो कर सिरमौर में हिमाचल की सबसे पहली प्रजा मण्डल संस्था का गठन किया गया। इसके संस्थापक पं. राजेन्द्र दत्त थे। उन्होंने इसका कार्यालय नाहन के स्थान पर पांवटा में स्थापित किया। इसमें चौधरी शेर जंग, मास्टर चतर सिंह, सालिग राम, कुन्दन लाल, अजायब सिंह आदि ने सक्रिय भाग लिया। 12 अक्तूबर, 1930 ई. को पंजाब तथा पहाड़ी रियासती प्रजा का प्रथम सम्मेलन लुधियाना में हुआ। इसमें सिरमौर के पांवटा से सरदार भगत सिंह और दो अन्य लोगों ने सिरमौर रियासत का प्रतिनिधित्व किया। इसी अवधि में सिरमौर रियासत के पं. शिवानन्द रमौल ने दिल्ली में स्थित “सिरमौरी एसोसिएशन” का सदस्य बनकर अपने आंदोलनकारी जीवन का आरम्भ किया। रियासत के भीतर राजेन्द्र दत्त आदि इसका संचालन करते रहे। 1934 ई. में सिरमौर रियासत में कुछ लोगों ने एक पश्चात् इन पहाड़ी रियासतों में तेजी से प्रजा मण्डल बनने लगे। सिरमौर प्रजा मण्डल की स्थापना की। इसमें डॉ. देवेन्द्र सिंह, रामनाथ और आत्मा राम संस्थापक सदस्य बने। प्रजा मण्डल के लोगों को आतंकित करने के लिए रियासती सरकार ने डॉ. देवेन्द्र सिंह, हरी चन्द पाधा, आत्माराम, इन्द्र नारायण और उनके साथियों पर मुकदमे चलाए। उन पर महाराजा को जान से मारने तथा उनकी कार पर पत्थर फेंकने के झूठे आरोप लगाए गए। इन दिनों यशवन्त सिंह परमार सिरमौर के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज थे। उन्होंने इस केस से संबंधित अपने फैसले में प्रजा मण्डल वालों का पक्ष लिया और उन पर लगे महाराजा की हत्या के आरोप को झूठा सिद्ध किया। यशवन्त सिंह परमार के राजा राजेन्द्र प्रकाश के साथ राजनैतिक मतभेद हो गए। इसी कारण उन्होंने सन् 1941 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। इस पर राजा ने उन्हें रियासत से निकाल दिया। उन्होंने 1943 से 1946 तक दिल्ली में सिरमौरियों को संगठित किया और उन्हें लोकतान्त्रिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार किया।

iii) बाघल, ठियोग एवं जुब्बल प्रजा मण्डल-शिमला में नौकरी करने वाले बाघल के कुछ लोगों ने 11 अगस्त, 1938 को जीवणु राम चौहान की अध्यक्षता में एक बैठक की और बाघल प्रजा मण्डल की स्थापना की। मंशा राम चौहान को इस प्रजा मण्डल का मन्त्री बनाया गया। इसका उद्देश्य लोगों में अपने अधिकारों के बारे में जागृति पैदा करना था। इस भावना को लेकर पं. भास्करनन्द ने भज्जी में सूरत राम प्रकाश ने ठियोग में तथा भागमल सौहटा ने जुब्बल में प्रजा मण्डलों का गठन किया। रियासत कोटी, कुमारसैन और बुशैहर में भी इसी प्रकार के प्रजा मण्डलों के गठन का कार्य आरम्भ हुआ।

(iv)बुशैहर प्रजा मण्डल–बुशैहर प्रजा मण्डल को 1945 ई. में पुनः सक्रिय करने के लिए बुशैहर की अन्य संस्थाओं जैसे-बुशैहर सुधार सम्मेलन, बुशैहर प्रेम सभा और सेवक मण्डल दिल्ली ने भी बुशैहर के लोगों को संगठित किया। पं. पद्मदेव ने शिमला में इसके लिए कार्य किया और रियासत के भीतर पं. घनश्याम और सत्यदेव बुशैहरी और अन्य कई नेताओं ने किया। बाद के वर्षों में नेगी ठाकुरसैन ने भी प्रजा मण्डल में सक्रिय रूप से भाग लेना आरम्भकिया। इसके साथ-साथ हा बिलासपुर, जुब्बल और अन्य क्षेत्रों के प्रजा मण्डलों ने भी अपनी-अपनी गतिविधियां तेज कर दी। 

(v)चम्बा सेवक संघ-मार्च 1936 में चम्बा रियासत में कछ लोगों ने “चम्बा सेवक संघ” नाम से एक संस्था का गठन किया। बाद में यह संस्था राजनैतिक उत्तरदायी सरकार के लिए माँग कर रहे हैं।” चम्बा में बदल गई। अत: सरकार ने इस संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया। परिणामस्वरूप संघ ने अपनी गतिविधियों का केन्द्र डलहौजी बना लिया। अवाज उठाई। उनका यह कहना था कि रियासत के दीवान ने सारे अधिकार अपने हाथ में ले रखे हैं। इसके परिणामस्वरूप जब आंदोलन ने जोर पकड़ा कई व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। गाँधी जी ने अहिंसा से आंदोलन चलाने के लिए कहा। अंग्रेजी के समाचार पत्र “दी ट्रिब्यून’ ने सम्पादकीय में लिखा “सोये हुए चम्बा में भी जागृति आ गई है।

vi)मण्डी प्रजा मण्डल-हिन्दी तथा उर्दू के समाचार पत्रों में चम्बा की बुरी दशा के बारे में लेख लिखे जाने लगे। मण्डी रियासत में भी 1936 में प्रजा मण्डल की स्थापना हुई। सिरमौर के पश्चात् पहाडी रियासतों में यह दूसरा प्रजा मण्डल था। स्वामी पूर्णानन्द इसके अध्यक्ष बने। इनके साथ राम चन्द मल्होत्रा, बलदेव राम, हरसुखराय, सुन्दरलाल और मोती राम प्रमुख थे। बाद में कृष्ण चन्द्र, तेज सिंह निधड़क, केशव चन्द्र, पद्मनाथ और हेम राज को प्रजा मण्डल के सदस्य बन गए। मण्डी के राजा ने प्रजा मण्डल की गतिविधियों पर पाबन्दी लगा दी।

vii)धामी प्रेम प्रचारिणी सभा-धामी रियासत के शिमला के निकट होने के कारण यहाँ के बहुत से लोग शिमला में नौकरी करते थे। उन्होंने अपनी रियासत में सुधार लाने के उद्देश्य से 1937 ई. में एक “प्रेम प्रचारिणी सभा’ बनाई। शिमला में कार्यरत बाबा नारायण दास को इसका अध्यक्ष और पं. सीता राम को मन्त्री बनाया गया। आरम्भ में इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक सुधार था, परंतु बाद में इसमें राजनैतिक कार्यों में भी भाग लेने और आंदोलन की बात होने लगी।

viii)धामी प्रजा मण्डल-इसी दौरान धामी रियासत की “प्रेम प्रचारिणी सभा’ ने सरकार के दमन से बचने के लिए रियासती प्रजा मण्डल शिमला में शामिल होने की योजना बनाई। इसी उद्देश्य को लेकर 13 जुलाई, 1939 ई. को भागमल सौहटा की अध्यक्षता में शिमला के निकट कुसुम्पटी के पास कैमली स्थान पर शिमला की पहाड़ी रियासतों के प्रजा मण्डलों की एक बैठक हुई। इस बैठक में धामी रियासत की “प्रेम प्रचारिणी सभा” को “धामी प्रजा मण्डल” में बदल दिया गया। धामी के पं. सीता राम को इस संगठन का प्रधान नियुक्त किया गया। इस अवसर पर धामी प्रजा मण्डल की ओर से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें राणा धामी से निम्नलिखित माँगें की गईं :

  1. बेगार प्रथा को समाप्त किया जाए।
  2. भूमि लगान में पचास प्रतिशत कमो को जाए।
  3. धामी राज्य प्रजा मण्डल को मान्यता प्रदान की जाए।
  4. लोगों को नागरिक अधिकारों की स्वतन्त्रता प्रदान की जाए।
  5. पाज्य की जनता पर लगाए गए प्रतिबन्ध और अवरोधों को समाप्त किया जाए।
  6. प्रेम प्रचारिणी सभा धामी के सदस्यों को जब्त की गई सम्पत्ति वापस की जाए।
  7. धामी में एक प्रतिनिधि उत्तरदायी सरकार का गठन किया जाए और उसमें जनता के प्रतिनिधियों को प्रशासकीय कार्यों में नियुक्त किया जाए।

इस प्रस्ताव में व्यक्त किया गया कि यदि रियासत के शासक की ओर से उनके मांग पत्र पर शीघ्र कोई उत्तर नहीं मिला तो 16 जुलाई को सात व्यक्तियों का एक शिष्टमण्डल हलोग आकर राणा से मिलेगा। मंशा राम को विशेष प्रतिनिधि बनाकर यह मांग पत्र राणा के पास धामी भेजा गया। राणा ने इस पत्र निर्धारित तिथि 16 जुलाई को भागमल सौहटा शिमला से धामी के लिए प्रस्थान करेंगे और धामी की राजधानी हलोग से लगभग डेट मील दर खेल के को अपना अपमान समझा। उसने प्रजा मण्डल की मार्ग स्वीकार नहीं की और प्रस्ताव का उत्तर नहीं दिया। उत्तर न पाने पर यह तय किया गया कि पूर्व गौरी सिंह उनके साथ मिलेंगे। वहाँ से वे राणा दलीप सिंह के पास जाएँगे।

धामी गोली काण्ड–भागमल सौहटा 16 जुलाई को लगभग ग्यारह बजे शिमला से एक छोटे से दल को लेकर धामी के लिए चल पड़े। इस दल के दो सदस्यों भगत राम और देवी सरन ने कांग्रेस का झंडा उठा रखा था। जब भागमल सौहटा और उनके साथी धामी की सीमा के पास घनाहट्टी के पास पहुँचे तो रियासत के सिपाहियों ने सत्याग्रहियों के नेता भागमल सौहटा को हिरासत में ले लिया और धार्मी ले गए। सत्याग्रहियों के स्वागत हेतु इकट्ठे हुए लोग राणा के विरुद्ध नारे लगाते हुए राणा के निवास स्थान के पास पहुँचे। राणा ने भयभीत होकर भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोली चलाने के आदेश दे दिए। इससे वहाँ खलबली मच गई और बहुत-से लोग बुरी तरह से घायल हो गए। दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। सत्याग्रह के नेता भागमल सौहटा को गिरफ्तार करके अम्बाला भेज दिया गया।

(ix) कुनिहार प्रजा मण्डल–शिमला हिल स्टेट्स प्रजा मंडल के नेता 8 जुलाई, 1939 ई. को कुनिहार रियासत गए। वहाँ पर उन्होंने कांशीराम के साथ कई लोगों को प्रजा मण्डल का सदस्य बनाया। 9 जुलाई, 1939 ई. को कुनिहार रियासत के दरबार भवन में कुनिहार के राणा हरदेव सिंह के सभापतित्व में “कुनिहार प्रजामण्डल” की विधिवत् स्थापना की गई। बाबू कांशीराम को प्रजा मण्डल कुनिहार का संरक्षक नियुक्त किया गया। इस सभा में भागमल सौहटा और देव सुमन भी उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त रियासत धामी, बाघल, पटियाला, महलोग के प्रतिनिधि भी इस सभा में भाग लेने आए हुए थे।

(x) शिमला हिल स्टेट्स रियासती प्रजा मण्डल (हिमालय रियासती प्रजा मण्डल) की स्थापना-1 जून, 1939 को शिमला पहाड़ी राज्यों के लोगों के प्रतिनिधियों की शिमला में एक सभा हुई। इसमें राजाओं और राणाओं की गुप्त गतिविधियों को प्रकाश में लाया गया। लुधियाना सम्मेलन से प्रभावित होकर शिमला की पहाड़ी रियासतों की विभिन्न संस्थाओं ने एक संयुक्त संस्था बनाई, जिसका नाम “शिमला हिल स्टेट्स रियासती प्रजा मण्डल” रखा गया।इस संस्था की स्थापना में बुशेहर के पं. पद्मदेव और जुब्बल के भागमल सौहटा ने विशेष योगदान दिया। इसमें पं. पद्मदेव को प्रधान और ‘भागमल सौहटा को महामन्त्री बनाया गया। जून 1939 ई. में पं. पद्मदेव तो शिमला से आर्य समाज का जत्था लेकर हैदराबाद चले गए और शिमला की पहाड़ी रियासतों में प्रजा मण्डल के प्रचार और प्रसार का काम भागमल सौहटा ने अपने हाथ में लेकर आगे चलाया। जुलाई 1939 में शिमला का पहाड़ी रियासतो में प्रजा मण्डल संगठन की स्थापना का अभियान चलाया गया। इसी मास के आरम्भ में भागमल सौहटा, हीरा सिंह पाल, देव सुमन ने महलोग रियासत में “प्रजा मण्डल महलोग” की स्थापना की।

(xi) हिमाचल हिल स्टेट्स कौसिल-सन् 1945 के अन्त में उदयपुर में “आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस” का अधिवेशन हुआ। अधिवेशन के पश्चात् वहीं पर पहाडी रियासतों से गए प्रजा मण्डल के प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र में प्रजा मण्डल को सुचारु रूप से चलाने के लिए जनवरी 1946 में “हिमाचल हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल” नामक एक संस्था की स्थापना की। इसके प्रधान स्वामी पूर्णानन्द बनाए गए और उनका कार्यालय मण्डी रखा गया। पं. पद्मदेव को इसका मुख्य सचिव बनाया गया और उनका कार्यालय शिमला में रखा गया। इसके अतिरिक्त श्याम चन्न नेगी को उप-प्रधान तथा शिवानंद रमौल को संयुक्त सचिव बनाया गया। “हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल” का पहला सम्मेलन 8 से 10 मार्च, 1946 को मण्डी में हुआ। कौंसिल के प्रधान स्वामी पूर्णानन्द, महामन्त्री पद्मदेव और संयुक्त सचिव शिवानन्द रमौल के अतिरिक्त सुकेत, मण्डो, बिलासपुर, सिरमौर, चम्बा, नालागढ़, बघाट और शिमला की पहाड़ी रियासतों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए आजाद हिन्द फौज के सुप्रसिद्ध सेनानी कर्नल गुरवयाल सिंह ढिल्लो भी मण्डी पहुँचे।

31 अगस्त और पहली सितम्बर 1946 को हिमालयन स्टेट्स रीजनल कौसिल का सम्मेलन नाहन-सिरमौर में हुआ। इस सम्मेलन में आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कान्फ्रेन्स के अध्यक्ष डा. पट्टाभिसीतारमैया तथा जयनारायण व्यास महामन्त्री, कर्नल शाहनवाज, दूनी चन्द अम्बालवी आदि के साथ पहाड़ी रियासतों के चालीस से अधिक प्रतिनिधि उपस्थित हुए। प्रजा मण्डल सिरमौर के नेता का राजेन्द्र दत्त, शिवानन्द रमौल, डॉ. देवेन्द्र सिंह, हितेन्द्र सिंह, रियासती सरकार की जड़ें हिल गई। इसी काल में चिरंजी लाल ने वापिस शांगरी जा कर वहाँ बेगार के विरुद्ध आंदोलन आरम्भ किया। इसी वर्ष ज्ञान चंद टूटू कोहिस्तान प्रजा मण्डल के प्रधान बने। नवम्बर 1946 में सत्यदेव बौहरी बुशैहर प्रजा मण्डल के प्रधान बने। इसी काल में भागमल सौहटा ने रियासत जुब्बल में प्रजा मण्डल आंदोलन को विशेष गति प्रदान की जयलाल शरखोली, मास्टर राम रतन, मियां काहन सिंह आदि ने भी इस आंदोलन में भाग लिया। बलसन रियासत में तो इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया। फरवरी 1947 ई. में भज्जी के लीला दास वर्मा, बिलासपुर के कांशीराम उपाध्याय और प्रजा मण्डल के कुछ अन्य कार्यकर्ता डॉ. यशवन्त सिंह के पास दिल्ली गए और उन्हें शिमला ले आए। शिमला में पं. पद्मदेव, शिवानन्द रमौल, दौलत राम सांख्यायन, पं. सीता राम, दुर्गा सिंह राठौड़ और अन्य पहाड़ी नेताओं के आग्रह पर डॉ. यशवन्त सिंह राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने शिमला के निकट संजौली में कृष्ण विला लॉज में रहना आरम्भ किया। वहीं पर संजौली में लीला दास वर्मा ने प्रजा मण्डल का कार्यालय भी खोला। इसके साथ ही डॉ. यशवन्त सिंह परमार ने स्थायी रूप से राजनीति में पदार्पण करके पहाड़ी रियासतों में आंदोलन का नेतृत्व करना आरम्भ किया। पहली मार्च 1947 को हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल की बैठक शिमला में हुई। इस बैठक में कौंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव हुए। डॉ. यशवन्त सिंह परमार को इसका प्रधान और पं. पद्मदेव को इसका महामन्त्री निर्वाचित किया गया। अप्रैल 1947 में डॉ. परमार दिल्ली से दौलत राम सांख्यायन, नरोत्तम शास्त्री, लीला दास वर्मा, शिवानन्द रमौल आदि के साथ कांग्रेस के ग्वालियर अधिवेशन में भाग लेने के लिए गए।

xiii) हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौसिल-10 जून, 1947 ई. को हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल की एक अन्य बैठक शिमला के रॉयल होटल में हुई। इसमें 16 सदस्यों में से 11 सदस्यों ने बैठक में भाग लिया। इस बैठक में सदस्यों में मतभेद पैदा हो गए और छः सदस्यों ने एक अलगसंगठन बना लिया। इस संगठन का नाम “हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनल कौंसिल” रखा गया। इस नई कौंसिल के प्रधान डॉ. यशवन्त सिंह परमार चुने गए। मण्डी के तेज सिंह निधड़क, भज्जी के लीला दास वर्मा और बिलासपुर के सदाराम चन्देल उप-प्रधान बनाए गए। पं. पद्मदेव महामन्त्री, दौलत राम गुप्ता प्रचार मन्त्री, सूरत राम प्रकाश कोषाध्यक्ष और सेनू राम को कार्यालय मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। इसके अतिरिक्त शिवानन्द रमौल, साधूराम, नर सिंह दत्त, हीरा सिंह पाल, गौरी नन्द, देवी राम, चमन लाल और चिरंजी लाल वर्मा को कौंसिल की कार्यकारिणी में शामिल किया गया। हिमालयन हिल स्टेट्स सबे-रीजनल कौंसिल ने पहला सम्मेलन 31 जुलाई, 1947 को शिमला की पहाड़ी रियासत सांगरी में किया, जिसमें डॉ. यशवन्त सिंह परमार, पं पद्मदेव, सत्यदेव बुशैहरी, सूरत राम प्रकाश, ठाकुर हरिदास, राधा कृष्ण आदि नेताओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन का आयोजन में स्थित आनी चला गया।अगस्त 1947 में सिरमौर प्रजा मण्डल ने नाहन में एक बड़ा सम्मेलन किया। इसके मुख्य आयोजक पं. राजेन्द्र दत्त,डॉ. देवेन्द्र सिंह, धर्म नारायण वकील, पं. शिवानन्द रमौल थे। इस सम्मेलन में सिरमौर के राजा राजेन्द्र प्रकाश ने भी भाग लिया। सम्मेलन में हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनल कौंसिल के अध्यक्ष डॉ. यशवन्त सिंह परमार को सभापति बनाया गया और उन्होंने राष्ट्रीय झंडा लहराया। नवम्बर 1947 ई. से डॉ. यशवन्त सिंह और पं. पद्मदेव ने सुकेत रियासत के दौरे आरम्भ किए। मण्डी में रियासत की ओर से प्रजा मण्डलों में भाग लेने वालों पर बहुत ज्यादतियां की जाने लगी और कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी कर लिया गया। सुकेत की रियासतो सरकार ने भी आंदोलनकारियों का दमन करना शुरू कर दिया। प्रजा मण्डल के प्रधान रत्न सिंह और उनके कुछ साथी भाग कर शिमला पहुंचे और यहाँ से वे लोग दिल्ली गए। वहाँ पर वे पं. जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिले। हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनल कौंसिल के प्रधान डॉ. यशवन्त सिंह परमार भी उनके साथ थे। केन्द्रीय नेताओं ने सहायता का आश्वासन दिया। हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनले कौंसिल गुट के अध्यक्ष डॉ. यशवन्त सिंह परमार पहाड़ी रियासतों के “भारत संघ” में विलय पर प्रचार करते रहे। दूसरी ओर मूल संस्था “हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल” के सदस्य भी अपना कार्य नियमित रूप से करते रहे। इसके मुख्य सदस्य भागमल सौहटा, सत्यदेव होरा सिंह पाल. भास्करानन्द शर्मा, स्वामी पूर्णानन्द, बाबू शिव दत्त, पं. सीता राम, ठाकुर हरि दास, सूरत राम प्रकाश, देवी राम, सन्त राम, मकुन्द लाल, सदा राम, नेगी विरजा नन्द, चिरंजी लाल वर्मा थे। इन लोगों ने 21 दिसम्बर, 1947 को इस गुट का सम्मेलन शांगरी रियासत की राजधानी बड़ागाँव में किया। इसकी अध्यक्षता सत्य देव बुशैहरी ने की। इस सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें सभी पहाड़ी रियासतों को मिलाकर एक पहाड़ी प्रान्त बनाने की मांग की गई। इन प्रजामण्डलों ने पहाड़ी राजाओं पर अपना बहुत दबाव बढ़ाया और उनसे मांग करने लगे कि वे अपनी रियासतों में उत्तरदायी सरकार बनायें। 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार के राज्य मन्त्रालय की प्रजा मण्डल कार्यकर्ताओं के साथ सहानुभूति होने से राजाओं ने भी नाजुक स्थिति देखकर अपनी रियासतों में उत्तरदायी सरकारें स्थापित करनी आरम्भ कर दी।

(xiii) प्रतिनिधि सरकारें-कुनिहार के ठाकुर ने इस आंदोलन की बहुत प्रशंसा की और अपने राज्य के लोगों को प्रशासन में सम्मिलित कर लिया। यह देखकर कछ अन्य शासकों ने भी ऐसा ही किया। स्वाधीनता दिवस के अवसर पर ठियोग रियासत के प्रजा मण्डल के नेताओं ने राणा कर्मचन्द को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया। कुछ समय के पश्चात् राणा ने मंत्री परिषद् की घोषणा कर दी, जिसके 13 सदस्य थे। महात्मा गाँधी और सरदार पटेल ने इन कदमों का स्वागत किया परंतु पाँच मास के पश्चात् राणा ने खजाने पर कुछ लोगों की सहायता से कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के हस्तक्षेप पर सशस्त्र पुलिस ठियोग भेजी गई। शासक को पकड़ कर वहाँ से बाहर निकाल दिया गया। ठियोग पहली रियासत थी, जो हिमाचल प्रदेश के बनने से पूर्व ही भारतीय संघ में मिल गई।

जुब्बल के राजा दिग्विजय चन्द्र ने आने वाले समय को देखते हुए आठ सदस्यों की एक समिति बनाई। इसके पाँच सदस्य निर्वाचित और तीन मनोनीत थ। इसका कार्य लोगों की शिकायतें सुनना और उन्हें दूर करना था। बाद में एक प्रतिनिधि सरकार बना दी गई, जिसके मुख्यमंत्री भागमल सौहटा तथा जयलाल शरखोली, वशीर चन्द नेगी, बाबू दूला राम भेजटा और कुंवर रघुवर सिंह मन्त्री बने। यह मन्त्रिमण्डल 15 अप्रैल, 1948 तक कार्य करता रहा। कोटी के राणा ने 25 नवम्बर, 1947 ई. को एक विधानसभा स्थापित करने की घोषणा की। बुशैहर में सत्य देव बुशैहरी ने मार्च, 1947 में ही सत्याग्रह आंदोलन आरम्भ कर दिया था। इस कारण बहुत-से कार्यकर्ता पकड़े गए। यह देखकर रियासत के कर्मचारियों ने आंदोलन करने आरम्भ कर दिए और उन्होंने “कर्मचारी संघ” बनाया। रियासती सरकार ने उनकी माँग मान ली और 18 अप्रैल, 1947 ई. को एक प्रतिनिधि सभा की बात स्वीकार कर ली। इस प्रतिनिधि सभा को स्थापित करने के लिए लोगों के प्रतिनिधियों को विश्वास में नहीं लिया गया। इसलिए उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पास किया। अक्तूबर 1947 ई. को चुनाव हुए और प्रजा मण्डल ने सत्यदेव बुशैहरी के नेतृत्व में चुनाव में विजय प्राप्त की। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कुछ लोगों ने मांग की कि पहाड़ी रियासतों को पूर्वी पंजाब में मिला दिया जाए। पूर्वी पंजाब के गवर्नर चन्दू लाल त्रिवेदी और मुख्यमंत्री गोपी चन्द भार्गव ने भी पं. जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को पत्र लिखे कि पहाड़ी रियासतों को पूर्वी पंजाब में मिला दिया जाए परंतु इन रियासतों के राजाओं तथा लोगों ने इसका डटकर विरोध किया। इन राजाओं तथा प्रजा मण्डल के लोगों का कहना था कि इन रियासतों के लोग भाषा, संस्कृति और सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से पंजाब के लोगों से एकदम अलग हैं। यही बात पं. जवाहर लाल नेहरू तथा सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पंजाब के गवर्नर चन्दू लाल त्रिवेदी और गोपीचन्द भार्गव के पत्रों के उत्तर में लिखी। इसलिए शिमला की पहाड़ी रियासतों के राजा जनवरी 1948 ई. के प्रथम सप्ताह में दिल्ली में इकट्ठे हुए और आगे का कार्यक्रम बनाया। बैठक में इन राजाओं ने यह प्रस्ताव पारित किया कि “पूर्ण रूप से विचार करने के पश्चात् यह निर्णय लिया गया है कि लोगों की भावना और भलाई को ध्यान में रखते हुए शिमला की सभी पहाड़ी रियासतों को एक संघ के रूप में संगठित किया जाए”। इसलिए सभी रियासतों को संदेश भेजे गए कि वे अपने-अपने प्रतिनिधि चुनकर 26 जनवरी, 1948 तक सोलन भेजें ताकि संविधान बनाने वाली समिति की बैठक में भाग ले सकें। इसी अवधि में बघाट का राजा दुर्गा सिंह तथा मण्डी के राजा जोगेन्द्र सेन दिल्ली में थे। वे दोनों वहाँ महात्मा गाँधी से मिले। गाँधी जी ने उन्हें सलाह दी कि वे प्रजा मण्डल और राजाओं के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाकर अपने भविष्य के बारे में फैसला करें।

||Praja Mandal Movements||Praja Mandal Movements in hindi||





                                    Join Our Telegram Group

Himexam official logo
Sorry this site disable right click
Sorry this site disable selection
Sorry this site is not allow cut.
Sorry this site is not allow copy.
Sorry this site is not allow paste.
Sorry this site is not allow to inspect element.
Sorry this site is not allow to view source.
error: Content is protected !!