Suket Jan Andolan in Himachal Pradesh-सुकेत रियासत में जन आन्दोलन

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Suket Jan Andolan in Himachal Pradesh-सुकेत रियासत में जन आन्दोलन

||Suket Jan Andolan in Himachal Pradesh||Suket Jan Andolan in HP||


 हिमाचल में आजादी की चिनगारी धीरे-धीरे फैलती रही । बहुत लंबे समय से यहां की जनता स्थानीय शासकों की निरंकुशता, हिंसा, शोषण और अन्याय सहती रही परंतु बाद में जनता ने इन शासकों के विरुद्ध आंदोलन करने शुरु कर दिए। हिमाचल प्रदेश में ये जन आंदोलन तीन प्रकार से चले । एक वो जो किसी विशेष स्थान के लोगों ने अपनी स्थानीय समस्याओं को लेकर चलाये। ये अधिकांश भूमि, भूमि लगान, भूमि बन्दोबस्त, बेठ-बगार, राजा या उसके कर्मचारियों की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध होते थे। इस प्रकार के आंदोलन शिमला की ऊपरी पहाड़ी रियासतों विशेषकर बुशहर में ‘दुम्ह’ और बिलासपुर में ‘जुग्गा’ और डांडरां नाम से जाने जाते थे। सन् 1859 में बुशहर रियासत में दुम्ह आंदोलन हुआ जिसे बड़ी कठिनाई से नियंत्रित किया गया। इसका मुख्य केन्द्र रोहडू का क्षेत्र था। बिलासपुर रियासत में जुग्गा और डांडरां प्रकार के आंदोलन हुए जिन्हें बड़ी सख्ती से में दबाया गया। 

सुकेत जन आंदोलन 

 1862-1876 के मध्य सुकेत के लोगों ने वजीर नरोत्तम के विरुद्ध विद्रोह किया। यह विद्रोह तभी समाप्त हुआ जब विद्रोह के मूल कारण वजीर को हटा दिया गया।

सुकेत के राजा लक्ष्मण सेन के काल में जनता से आवश्यकता से अधिक लगान लिया जाता था, बेगार प्रथा भी जोरों पर थी। राजा के नाम से लक्ष्मण कानून चलाया जाता था। 1924 में जब बेगार लगान और अत्यधिक करों से जनता परेशान हो गई, तब जनता ने आंदोलन की राह पकड़ ली तथा इसका नेतृत्व बनैक (सुन्दरनगर) के मियां रत्न सिंह ने किया। इस आंदोलन में सुकेत के कई क्षेत्र के लोगों ने भी भाग लिया। आंदोलनकारियों से निबटने के लिए राजा लक्ष्मण सेन ने अंग्रेजी सेना का सहारा लिया। रत्नसिंह और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा आंदोलन को सख्ती से दबा दिया गया। अक्टूबर, 1926 में ठियोग ठकुराई में राणा पद्मचन्द के प्रशासन के विरुद्ध जनता ने आन्दोलन किया परन्तु बाद में आन्दोलन शिथिल पड़ गया।

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