हिमाचल प्रदेश औद्योगिक नीति, 2013
हिमाचल प्रदेश औद्योगिक नीति, 2013 के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- स्थानीय सामग्री का अधिकतम उपयोग करना तथा बेकारी की समस्या को दूर करना।
- ऐसे उद्योग जिनमें श्रम का अधिक प्रयोग होता है और अधिक लोगों को काम देने की क्षमता है, उन्हें अधिमान दिया जाएगा।
- स्थानीय उद्यमों को विकसित करना।
- उद्योगों को पाँच वर्गों (ए, बी, सी, डी व ई) में बाँटा गया है।
– ‘ए’ तथा ‘बी’ वर्ग में वे उद्योग आते हैं, जिनमें कीमती सामान बनता है और जो स्थानीय संसाधनों; जैसे-जलवायु, पर्यटन क्षमता आदि पर निर्भर हैं।
– ‘सी’ श्रेणी के उद्योग मुख्यतः स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और भविष्य में उनका विकास प्रदेश की आवश्यकताओं के अनुरूप ही किया जाएगा। ‘ए’ और ‘बी’ वर्ग के उद्योगों को अधिक महत्त्व दिया जाएगा।
– वर्ग ‘डी’ में ऐसे उद्यमों को रखा गया है, जिनके कच्चे माल की सीमित उपलब्धता है। ऐसे उद्यमों की स्थापना को तभी मंजूरी दी जाती है, जब यह स्पष्ट हो कि भविष्य में कच्चे काम की उपलब्धता बनी रहेगी।
– ‘ई’ वर्ग के उद्योग जो बाहरी कच्चे माल और बाहरी माँग पर निर्भर करते हैं, उन्हें सबसे कम महत्त्व दिया जाता है। जब कच्चे माल की आपूर्ति के निश्चित संकेत न हों, इन्हें नहीं लगाया जाता।
- आकार के स्तर पर सर्वाधिक वरीयता लघु एवं कुटीर उद्योगों को दी जाती है। बड़े और मध्यम श्रेणी के उन्हीं उद्योगों को अधिक प्रोत्साहित किया जाएगा, जोकि ‘बी’ वर्ग में आते हैं और स्थानीय घटकों; जैसे—जलवायु और पर्यटन आदि को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
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