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History of Bilaspur District

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History of Bilaspur District

||History of Bilaspur District|| Bilaspur District history||

History of Bilaspur District
History of Bilaspur District


  •  कहलूर रियासत की स्थापना-बिलासपुर पास्ट एण्ड प्रजेंट, बिलासपुर गजेटियर और गणेश सिंह की पुस्तक चन्द्रवंश विलास और शशिवंश विनोद से पुष्टि होती है कि कहलूर रियासत की नींव बीरचंद ने 697 ई. में रखी जबकि डॉ. हचिसन एण्ड वोगल की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ पंजाब हिल स्टेट के अनुसार बीरचंद ने 900 ई. में कहलूर रियासत की स्थापना की। शशिवंश विनोद को बिलासपुर के राजा हीराचंद (1857-83) के समय में रचा गया। बीरचंद चंदेल बुंदेलखण्ड (मध्य प्रदेश)चन्देरी के चंदेल राजपूत थे। बीरचंद के पिता हरिहर चंद के पाँच पुत्र थे। बीरचंद ने सतलुज पार कर सर्वप्रथम रूहंड ठाकुरों को हराकर किला स्थापित किया जो बाद में कोट-कहलूर किला कहलाया। बीरचंद ने नैणा गुज्जर के आग्रह पर नैना देवी मंदिर की स्थापना कर उसके नीचे अपनी राजधानी बनाई। पौराणिक कथाओं के अनुसार नैना देवी में सती के नैन गिरे थे। राजा वीर चंद ने 12 ठकुराइयों (बाघल, कुनिहार, बेजा, धामी, क्योंथल, कुठाड, जुब्बल, बघाट, भज्जी, महलोग, मांगल, बलसन) को अपने नियंत्रण में किया।
  •  कहालचंद-कहालचंद के पुत्र अजयचंद ने हण्डूर रियासत (नालागढ़) की स्थापना की।
  • मेघचंद-मेघचंद को उसके कठोर बर्ताव के कारण जनता ने राज्य छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। मेघचंद ने कुल्लू रियासत में शरण ली और इल्तुतमिश की सहायता से पुनः गद्दी प्राप्त की।
  • अभिसंद चंद-अभिसंद चंद सिकंदर लोदी का समकालीन था। उसने तातार खान को युद्ध में हराया था। सम्पूर्ण चंद-सम्पूर्ण चंद को उसके भाई रतनचंद ने मरवा दिया था।
  •  ज्ञानचंद (1570 ई.)-ज्ञानचंद के शासनकाल में कहलूर रियासत मुगलों के अधीन आ गई। ज्ञानचंद अकबर का समकालीन राजा था। ज्ञानचंद ने सरहिन्द के मुगल वायसराय के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म अपना लिया था। ज्ञानचंद का मकबरा आज भी किरतपुर पंजाब में देखा जा सकता है। ज्ञानचंद के 3 बेटों में से 2 ने (राम और भीम) इस्लाम धर्म जबकि बीकचंद ने हिन्दू धर्म को अपनाया।
  • बीकचंद (1600 ई.)-बीकचंद ने 1600 ई. के आसपास नैना देवी/कोटकहलूर से अपनी राजधानी बदलकर सुनहाणी कर ली।
  • कल्याण चंग (1630ई.)-कल्याण चरन हदूर रियासत को सीमा पर एक किले का निर्माण करवाया जिसके कारण दोनों रियासतों के बीच युद्ध हुआ जिसमें हादूर के राजा की मृत्यु हो गई। भोजन में विष देकर मरवा दिया।
  • बीपचंद (1650-1667 ई.)-दीपचंद ने 1654 ई. में अपनी राजधानी सुनहाणी से उपलकर व्यास गुफा के पास व्यासपुर (बिलासपुर) में स्थानांतरित “राणा को राम-राम”, और “मियाँको जय-जय” जैसे अभिवादन प्रधा शुरू करवाई। राजा दीपचंद को “नादीन” में 16678 में कांगड़ा के राजाने की। बिलासपुर शहर की स्थापना 16611 में दीपचंद चंदेल ने की दीपचंद ने बोलरामहल का निर्माण करवाया। ‘,
  • भीमचंद (1667 ई.से 1712ई.-बिलासपुर (कहलूर) के राजा भीमथर लगभग 20 वर्ष तक गुरु गोबिंद सिंह के साथ परस्पर बुद्ध में व्यस्त रहे। गुरु गोविंद सिंह ने 1682 में कहलूर को वजा की। कहलूर का राजा 16861 में भगानी साहिब के युद्ध में गुरु गोबिंद से पराजित हुआ था। दोनों के बीच 1682,1685,1686 और 1700 में युद्ध हुआ जिसमें हर बार भीमचंद पराजित हुआ। दोनों के बीच 1701 ई. में शांति सन्धि हुई।
  •  अजमेरचंद (1712-1741) अजमेर बंद हण्डूर की सीमा पर ‘अजमेलड़’ किला बनवाया। गुरु गोविन्द सिंह और भीमचंद ने 1667ई में नादौन में मुगल की सेना को पराजित किया था। भीमचंद की 1712 में मृत्यु हुई।
  • देवीचंद (1741-78 ई.)-राजा देवीचंद ने हण्डर रियासत के राजा मनचंद और उसकपुर का मृत्युकबाद जनता के आग्रह पर स्वय गद्दी पर  बैठकर गजे सिंह हण्डरिया को राजा बनाया। देवीचंद में 1751 ई. में घमण्ड चंद की युद्ध में सहायता की थी। देवीचंद नादिरशाह का समकालीन था। देवीचंद नेहण्हर के राजा विजय सिंह को रामगढ़ दुर्ग दे दिया था। देवीचर को नादिरशाह ने बंदी बनाया था।
  • महान चंद (1778-1824 ई.)-बिलासपुर पर सबसे लम्बी अवधि तक (46 ) महान चंद ने शासन किया। बिलासपुर के राजा महान पद के नाबालिग होने के समय रामू वजीर ने प्रशासन पर नियंत्रण रखा रामू वजार की 1783 ई. ममृत्यु होने के बाद 1790 तक 12ठकुराइयों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। संसार चंद ने 1795 में बिलासपुर पर अक्रमण किव जिसमें सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश की मृत्यु हो गई। संसार चंदनबिलासपुर के झाजियार धार पर छातीपुर किले का निर्माण बिलासपुर करवाया। बिलासपुर के राजा महान चंद ने 1803 ईगोरखों से सहयोग मांगा। जिसके बाद 1805 ई. में गोरखों ने संसार चंद को पराजित किया। बिलासपुर 1803 ई. से 1814 ई. तक गोरखों के अधीन रहा। ब्रिटिश जनरल डेविड ऑक्टरलोनी के अधीन हो गया। 1819 ई. में ऐसा सिंह मजीठिया ने बिलासपुर पर आक्रमण किया। सन् 1818 ई. में संसारू वजीर को राजा ने नौकरी से निकाल दिया।
  • खड़क चंद ( 1824-1839 ई.) खड़क चंद के शासनकाल को बिलासपुर रियासत के इतिहास में काला युग के नाम से जाना जाता है। खड़क चर निसंतान मर गया और उसकी मौत के बाद उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ। संसारू वजीर की मृत्यु के बाद 1832 में उसका पुत्र विशन सिंह बजार बना। रसल क्लार्क उस समय अम्बाला का पॉलिटिकल एजेन्ट था।
  • राजा जगतचंद (1839-1857 )-मियाँ जंगी को खड़कचंद की मृत्यु के बाद प्रशासन का कामकाज सौंपा गया। खड़क चंद की मृत्यु के बाद उसके चाचा जगत चंद को राजा बनाया गया। राजा जगत चंद के इकलौते पुत्र ‘नरपत चंद’ की 1844 में मृत्यु के बाद राजा जगतचंद अपने पोते हीराचर को गद्दी सौंप कर वृन्दावन चला गया जहाँ 1857 ई.. में उसकी मृत्यु हो गई।
  •  हीराचंद (1857-1882 ई.)-हीराचंद ने 1857 ई. के विद्रोह में अंग्रेजों की सहायता की। हीराचंद के शासनकाल को बिलासपुर रियासत के इतिहास में स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है। मियाँ भंगी पुरंगनिया हीराचंद के समय बिलासपुर रियासत के वजीर थे। हीराचंद ने 1874 ई. में जगतखाना और स्वारघाट में टैंक का निर्माण करवाया। हीराचंद ने सर्वप्रथम बिलासपुर में भू-राजस्व सुधार किये। हीराचंद की 1882 ई. में महोली नामक स्थान पर मृत्यु हो गई। हीरांचद के समय भूमिकर का कुछ भाग नकदी में और कुछ भाग उपज के रूप में लिया जाता था। वर्ष 1863 में फसल का भाग जो भूमि कर के रूप में लिया जाता था वह पैदावार का तीसरा हिस्सा था।
  • अमरचंद (1883-1888 ई.)-अमरचंद के शासन काल में बिलासपुर के गेहड़वी में झुग्गा आंदोलन हुआ। अमरचंद ने 1885 ई. में रियासत के अभिलेख देवनागरी लिपि में रखने व कामकाज देवनागरी लिपि में करने के आदेश पारित किये। इनके कार्यकाल में बिलासपुर में दूम्ह आंदोलन हुए।
  • विजयचंद ( 1888-1928 ई.)-विजयचंद ने बिलासपुर में 1900 ई. में रंगमहल का निर्माण करवाया। विजयचंद ने कोर्ट फीस ज्यूडीशियल स्टॉम्प शुरू करने के अलावा बिलासपुर शहर में पानी की सप्लाई शुरू करवाई। बहादुरपुर को उन्होंने अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। उनके शासनकाल में 1903) अमर सिंह वजीर थे। प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में विजयचंद ने अंग्रेजों का साथ दिया। विजय चंद ने अपनी रियासत का प्रशासन ब्रिटिश मॉडल पर करने की कोशिश की लेकिन उसे अपने कर्मचारियों का सहयोग नहीं मिला। वर्ष 1903 के आसपास विजयचंद को बिलासपुर रियासत से निर्वासित कर बनारस में रहने का हुक्म दिया गया। राजा को प्रथम विश्व युद्ध में सहायता के लिए अंग्रेजों ने K.C.LE. तथा मेजर की मानद उपाधि प्रदान की। 1931 ई. में बनारस में विजयचंद की मृत्यु हो गई। वर्ष 1909 से 1918 ई. के बीच मियाँ दुर्गा सिंह राज्य का वजीर था। उसके बाद इन्द्र सिंह और हरदयाल सिंह वजीर बने।
  • आनंदचंद (1928-1948 ई.)-आनंदचंद महात्मा गाँधी के शिष्य थे। आनंदचंद बिलासपुर रियासत के अंतिम शासक थे। बिलासपुर को भारत में विलय का वह विरोध करते थे और स्वतंत्र अस्तित्व के पक्षधर थे। बिलासपुर को 9 अक्टूबर, 1948 को ‘ग’ श्रेणी का राज्य और 12 अक्तूबर को आनंदचंद को बिलासपुर का पहला मुख्य आयुक्त बनाया गया। उनके बाद 2 अप्रैल 1949 को श्रीचंद छाबड़ा बिलासपुर के दूसरे मुख्य आयुक्त बने। बिलासपुर का 1 जुलाई, 1954 ई. को हि.प्र. में वें जिले के रूप में विलय कर दिया गया। राजा आनंदचंद लोकसभा में निर्विरोध चुने गए। वह 1957 ई. में हि.प्र. तथा 1964 ई. में बिहार से राज्यसभा के लिए चुने गए।


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