History Of Kinnaur District
History Of Kinnaur District |
1. प्राचीन इतिहास – वर्तमान किन्नौर प्राचीन रियासत बुशहर का हिस्सा रहा है | किन्नौर की आदिम जाति की उत्पति दैविक लीला से हुई मानी जाती है | अमरकोश ग्रंथ में किन्नर जाति का वर्णन मिलता है | हिन्दूधर्म ग्रंथ में किन्नर लोगों को अश्वमुखी और किम + नर: (किस प्रकार का नर) कहा गया है | तिब्बती लोग किन्नौर को खुनू कहते हैं | लद्दाख में किन्नौर, बुशहर और कामरू को मोने कहा जाता है | किन्नौर के निवासी प्राचीन काल में खस थे | किन्नौर राजपूत जो खसों की उपजातियाँ थी | कनैत और जड़ में विभाजित हो गई थी |
पाण्डवों ने 12 वर्षों का वनवास किन्नौर में बिताया था | कालिदास ने अपनी पुस्तक कुमारसंभव में किन्नरों का वर्णन किया है | वायु पुराण में किन्नरों को महानंद पर्वत का निवासी बताया गया है |
रियासत की स्थापना – बनारस के चन्द्रवंशी राजा प्रद्युम्न ने कामरू में राजधानी स्थापित कर बुशहर रियासत की नींव रखी |
बौद्ध धर्म का आगमन – सातवीं से दसवीं सदी के बीच तिब्बत के गूगे साम्राज्य के प्रभाव में आकर किन्नौर में बौद्ध धर्म और भोटिया भाषा का प्रभाव पड़ा था |
2. मध्यकालीन इतिहास – बुशहर रियासत बिलासपुर और सिरमौर के साथ शिमला पहाड़ी राज्यों की तीन प्रमुख शक्तियों में से एक थी |
राजा चतर सिंह बुशहर रियासत का 110वाँ शासक था | चतर सिंह ने अपनी राजधानी कामरू से सराहन स्थानांतरित की थी | राजा चतर सिंह का पुत्र केहरी सिंह रियासत का सबसे प्रभावी शासक था जिसे ‘अजानबाहु’ भी कहा जाता है , उसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने ‘छत्रपति’ की उपाधि दी |चतर सिंह के प्रपौत्र कल्याण सिंह ने कल्याणपुर शहर को अपनी राजधानी बनाया |
3. आधुनिक इतिहास –
गोरखा आक्रमण – केहर सिंह की मृत्यु के बाद उसका नाबालिग पुत्र महेंद्र सिंह गद्दी पर बैठा | गोरखों ने 1803 से 1815 तक बुशहर रियासत पर आक्रमण कर सराहन पर कब्जा कर लिया | राजा महेंद्र सिंह ने कामरू में अपना डेरा जमाया | वजीर टिक्का राम और बदरी प्रसाद ने गोरखों के विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व किया | सतलुज नदी पर बने वांगतू पुल को तोड़कर गोरखों के आक्रमण को रोका गया |