Important Indian History GK Series For HP Police Constable Set-2
- वैदिक काल का विभाजन-ऋग्वैदिक काल 1500-1000 ई.पू. और उत्तर बैदिक काल 1000-600 ई.पू. में किया गया है। इसके संस्थापक आर्य थे।
- ऋग्वैदिक लोगों द्वारा सर्वप्रथम तांबे का प्रयोग किया गया था, ऋग्वेद में अयस नामक धातु का उल्लेख हे।
- मैक्समूलर, आर्यों को आदि देश, मध्य एशिया को मानते हैं।
- मैक्समूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना है। आयों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई।
- सिन्धु सभ्यता के विपरीत आर्य सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी। उनकी भाषा संस्कृत थी।
- आर्य समाज पितृप्रधान था। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार (कुल) थी जिसका मुखिया “कुलप’ कहलाता था।
- आर्यों ने प्रशासनिक इकाई को 5 भागों में बाँठ था-कुल, ग्राम, बिश, जन तथा राष्टू।
- ग्राम का मुखिया ग्रामिणी एवं विश का प्रधान विशपति कहलाता था। जन के शासक को राजन कहा जाता था।
- राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे।
- सूत, रथकार तथा कम्मादि नामक अधिकारी रत्निन कहे जाते थे।
- इनकी संख्या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी।
वैदिक कालीन नदियाँ :-
प्राचीन नाम | वर्तमान नाम |
---|---|
सिंधु | इन्दुस या इन्डस |
सरस्वती | सरस्वती |
शतुद्री | सतलुज |
विपाशा | व्यास |
पुर्ष्पाणि | रावी |
आस्किणी | चिनाब |
वितस्ता | झेलम |
गोमल | गोमती |
कुंभा | काबुल |
सुवाश्तु | स्वात |
सदानीरा | गंडक |
- पुरप-दुर्गपति एवं स्पश-जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे
- ब्राजपति-गोचर भूमि का अधिकारी होता था।
- उग्र-अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था।
- सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी। सभा श्रेष्ठ एवं संग्रा लोगों की संस्था थी।
- ऋणग्वैदिक काल में महिलाएँ भी सभा एवं विदथ में भाग लेती थी।
- ऋग्वेद में जन शब्द का उल्लेख 275 बार, विश 170 बार, सभा 8 बार, समिति 9 बार एवं शूद्र शब्द का उल्लेख एक बार आया है।
- ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र नदी थी यद्यपि इसमें गंगा और यमुना का उल्लेख सिर्फ एक बार हुआ है।
- विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई (देवर ) से विवाह कर सकती थी, जिसे नियोग कहा जाता था।
- स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थी। ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, अपाला एवं विश्वारा जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है।
- आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था।
- ऋग्वैदिक समाज में तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग होता था-. वास, 2. अधिवास, 3. उष्णीष। अन्दर पहनने वाले कपड़े को नीबि कहा जाता था।
- ऋण देकर ब्याज लेने वाले व्यक्ति को वेकनॉट (सूदखोर) कहा जाता था।
- “अमाजू’ अविवाहित स्त्रियों को कहा जाता था।
- ऋग्वैदिक काल का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था।
- कृषि संबंधी प्रक्रिया से सम्बन्धित उल्लेख ऋग्वेद के चतुर्थ मण्डल में मिलता है।
- चारों आश्रमों का वर्णन सर्वप्रथम जाबालोपनिषद् में मिलता है।
- अतिथि को “गोहन्ता’ कहा जाता था तथा गाय को “अघन्या’ (न मारने योग्य) कहा गया है।
- आर्यों के मुख्य देवता इन्द्र’ तथा प्रिय पशु ‘घोड़ा’ था।
- वैदिक काल में लोहे को श्याम अयस्‘ तथा ताँबे को “‘लोहित अयस्‘ कहा जाता था।
- आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा थी।
- व्यापारी वर्ग को “पणि’ कहा जाता था।
- कारोबार वस्तु-विनिमय प्रणाली पर आधारित था।
- ऋग्वैदिक आर्यों ने देवताओं को तीन भागों में विभक्त किया- . आकाश के देवता-सूर्य, चौस, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, सविता आदि। 2. अंतरिक्ष के देवता-इन्द्र, मरुत, रुद्र, वायु आदि। 3. पृथ्वी के देवता-अग्नि, सोम, पृथ्वी, वृहस्पति तथा सरस्वती आदि। ऋग्वैदिक देवियां-अदिति, ऊषा, पृथ्वी, अरण्यानी,
- आर्यो के जीवन में गायों का महत्त्व सर्वाधिक था।
- अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं पशुपालन था।
- गाय के अतिरिक्त भेड़, बकरियों का पालन किया जाता था।
- आर्य जौ की खेती पर अधिक ध्यान देते थे। ७
- इस समय निष्क एवं शतमान नामक सिक्कों का उल्लेख मिलता है।
वैदिक काल में प्रयोग किए जाने वाले शब्द
राजा | गोप्ता |
अतिथि | गोहता/गोहन |
युद्ध | गविष्टि, गेसू, गम्य |
गाय | अघन्या |
लांगल | हल |
ब्राजपति | चारागाह प्रमुख |
कुलप | परिवार का प्रधान |
स्पश | गुप्तचर |
खिल्य | चारागाह |
बेकनाट | सूदखोर |
अनाज | धान्य |
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